SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 263
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Uvavaiya Suttam Su. 39 एअमट्ठ पडिसुगंति । एडित्ता गंगं महाणई त्तिकट्टु अण्णमण्णस्स अंतिए पणता दिंडय जाव... एगंते एडेइ । ओगार्हति । ओगाहित्ता वेलुआसंथारयं दुरुर्हिति वा । दुरुहित्ता पुरत्याभिमुहा संपलियं क निसन्ना करयल जाव... कट्टु एवं वयासी 234 इस प्रकार यह बात एक-दूसरे से कर्णोपकर्ण से सुनी । ऐसा सुन करें-उन्होंने ऐसा तय कर त्रिदण्ड... यावत् आदि अपने उपकरण एकान्त में छोड़ - डाल दिये । वैसा कर गंगा- महानदी में प्रवेश किया। फिर बालू का संस्तार बिछौना तैयार किया । संस्तारक तैयार कर वे उस पर अवस्थित हुए । अवस्थित होकर पूर्व दिशा की ओर अभिमुख हो, पद्मासन में बैठे। बैठ कर दोनों हाथ जोड़ कर इस प्रकार बोले By the words of the mouth, this decision reached everybody. Having heard this, they discarded the triple staff, etc. Having done so, they entered into the great river Gangā. They prepared their bed out of sand. They sat on it. They sat in the padmasana posture with their faces turned towards the east and submitted as follows with folded hands णमोऽत्यु णं अरहंताणं जाव... संपत्ताणं । णमोऽत्यु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव... संपाविउकामस्स नमोऽत्यु णं अम्मडस्स परिव्वायगस्स अम्हं धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स । अर्हत् — देव, इन्द्र आदि द्वारा पूजित या कर्म शत्रुओं के नाशक .... यावत् सिद्धावस्था नामक स्थिति प्राप्त किये हुए - सिद्धों को नमस्कार हो । श्रमण - घोर तप अध्यात्म साधना रूप श्रम में निरत, भगवान् - आध्यात्मिक ऐश्वर्य सम्पन्न, महावीर -- उपद्रवों एवं विघ्नों के बीच साधना मार्ग पर वीरतापूर्वक अविचल भाव से गतिशील, श्रमण भगवान्
SR No.002229
Book TitleUvavaia Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rameshmuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1988
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy