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उववाइय सुत्तं सू० ३९
233 हम इस समय-आपत्ति काल में भी अदत्त का ग्रहण नहीं करें, सेवन न करें * तो हमारे व्रत का लोप-भंग नहीं होगा। अतः हे देवानुप्रियों ! हमारे लिये
श्रेयस्कर है कि हम त्रिदण्ड-तीन दण्डों अथवा वृक्ष की शाखाओं को एक साथ मिला कर या बांध कर बनाया गया एक दण्ड, कमंडलु, काञ्चनिकाएँ-रुद्राक्ष की मालाएँ, करोटिकाएँ-मिट्टी के पात्र-विशेष, वषिकाएँ-बैठने की पटड़िया, षन्नालिकाएँ-त्रिकाष्टिकाएँ, अंकुशकदेवार्चन के लिये वृक्ष के पत्तों को खींचने का साधन, केशरिकाएँ-सफाई करने, पोंछने आदि के उपयोग में लेने योग्य वस्त्र-खण्ड, पवित्रिकाएँतांबे की अंगूठिकाएँ-अंगूठियां, गणेत्रिकाएँ-हस्ताभरण-विशेष- हाथों में धारण करने हेतु रुद्राक्ष की मालाएँ, छत्र-छातें, पादुकाएं-काठ की खडाऊएं, धातुरक्त गेरूए--रंग की धोतियां, एकान्त में छोड़ कर गंगा महानदी को पार कर के बालू का संस्तारक बिछौना तैयार कर संलेखनापूर्वक-शरीर एवं कषायों को-विराधक संस्कारों को क्षीण करते हुए, आहार-पानी का त्यागकर, कटे हुए वृक्ष के समान निश्चेष्टावस्था स्वीकार कर मृत्यु की आकांक्षा-इच्छा न करते हुए शान्तचित्त से संस्थित रहें।
When they did not find anyone who could replenish their water supply, again they started talking among themselves which was as follows : "Oh beloved of the gods ! There is no one here who could give us water. Our code does not permit us to accept water which is not offered nor to use such water. Under these circumstances, even in this difficult time, let us not accept water, let us not use water. Then our vow will 'remain untransgressed. Oh beloved of the gods! It is advisable. therefore, that we discard at some lonely place our triple staff, water pot, rudrāksa garland, earthen bowls, wooden seat, şannālaka, angle to pull down leaves to worship with, duster, copper ring, bangle, umbrella, sandals and our saffron cloth, cross through the Gargā or enter into the river, make use of sand as our bed, reduce our consciousness of body and other objects, give up our food and drink, and stay with a tranquil mind, tree-like, devoid of movement, not desiring for death."