SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 228
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उववाइय सुत्तं सू० ३८ वे उठकर खड़े होकर, जहाँ श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे, "वहाँ आए । आकर श्रमण भगवान् महावीर को तीन बार आदक्षिणाप्रदक्षिणा की। वैसा कर - आदक्षिणा प्रदक्षिणा कर भगवान् को वन्दना की, नमस्कार किया । वन्दना कर, नमस्कार कर भगवान् के न अधिक समीप, न अधिक दूर, शुश्रूषा – सुनने की उत्कण्ठा रखते हुए, नमस्कार करते हुए विनयपूर्वक, सम्मुख होकर हाथ जोड़े हुए, उनकी पर्युपासनाअभ्यर्थना या सान्निध्यलाभ प्राप्त करते हुए इस प्रकार बोले 199 Then he came where Bhagavan Mahavira was, thrice moved round him and paid his homage and obeisance. Then standing neither near nor very far from him, with full attention and face turned towards him, with folded hands, while worshiping, he made the following submission: कर्मबन्धन Bondage of Karma गौतम : जीवे णं भंते ! असंजए अविरए अप्पsिहयपच्चक्खायपावकम्मे सकिरिए असंवुडे एगंतदंडे एगंतबाले एगंतसुत्ते पावकम्मं अण्हाति ? महावीर : हंता अहाति ॥ १ ॥ गौतम : हे भगवन् ! वह जीव जो असंयत है, जिसने संयम की साधना और आराधना नहीं की है, जो अविरत है - प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान आदि से विरत नहीं है, जिसने प्रत्याख्यान के द्वारा अर्थात् सम्यक् श्रद्धापूर्वक पापकर्मों का त्याग नहीं किया है - उन्हें हल्का नहीं किया है, जो सक्रिय - मानसिक, वाचिक एवं कायिक क्रियाओं से युक्त है, जो क्रियाएँ करता है, जो असंवृत्त है – सम्यक्त्व, व्रत, अप्रमाद आदि सुंदर से रहित है, या जिसने इन्द्रियों के विषयों का निरोध या संवरण " FE:
SR No.002229
Book TitleUvavaia Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rameshmuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1988
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy