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उववाइय सुत्तं सू० ३४ काँटों का निवारक है। सिद्धिमार्ग-सिद्धावस्था प्राप्त करने का मार्ग-उपाय है। मुक्तिमार्ग-कर्म रहित अवस्था का हेतु है। निर्वाणमार्ग-सकल संताप रहित अवस्था प्राप्त कराने का मार्ग है। निर्माण मार्ग-पुनः नहीं लौटाने वाले अर्थात् जन्म-मत्यु के चक्र में नहीं गिराने वाले गमन का पथ है। अवितथ–वास्तविक, सद् भूतार्थ, अविसन्धि-महाविदेह क्षेत्र की अपेक्षा से न कभी विच्छेद होता है और न कभी विच्छेद होगा, पूर्वापर विरोध से रहित सर्वदुःख प्रहीण मार्ग-समस्त दुःखों को प्रहीणसर्वथा क्षीण करने का मार्ग है। ऐसे मोक्ष का यह मार्ग है। इस (प्रवचन ) में स्थित जीव सिद्धि--सिद्धावस्था प्राप्त करते हैं, या महती सिद्धियों को प्राप्त करते हैं, केवल-ज्ञानी होते है, भवोपग्राही–जन्म-मृत्यु के चक्र में लाने वाले कमांश से रहित हो जाते हैं। परिनिर्व त हो जाते हैं-कर्म कृत समस्त संताप से रहित परमानन्दमय हो जाते हैं। सभी दुःखों का अन्त कर देते हैं। एकार्चा--जिनके एक ही मनुष्य-भव धारण करना शेष रहा है ऐसे भदन्त--कल्याणान्वित या निर्ग्रन्थ प्रवचन के भक्त पूर्व कर्मों के अवशेष रहने से किन्हीं देवलोकों में देव के रूप में उत्पन्न होते हैं।
He elaborated the Law at length. These words of the . Nirgranthas are true, unprecedented, supreme, . complete, irrefutable and remover of all thorns. They are road to perfection, to liberation, to no-return, to ending all misery, real and relative to Mahavideha. They have never failed, nor will they ever fail. They terminate all misery. Souls treading on this road are perfected, enlightened, liberated ; they enter into a state of perfect bliss ; they end all misery. Or, if they have to pass through one more human life, the beneficiaries are thereafter born, if they have still to exhaust some previously acquired karma, as divine beings in one of the heavens.
.. महड्डिएसु जाव...महासुक्खेसु दूरंगइएसु चिरट्टिईएसु ते णं
तत्थ देवा भवंति महड्डिए जाव...चिरट्ठिईआ हारविराइय