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________________ उववाइय सुत्तं सू० ३१ 165 जुत्तीए सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वादरेणं सव्वविभूईए सव्वविभूसाए सव्वसंभमेणं सव्वपुप्फगंधमल्लालंकारेणं सव्वतुडिअसद्दसण्णिणाएणं महया इड्डीए महया जुत्तीए महया बलेणं महया समुदएणं महया वरतुडिअजमगसमगप्पवाइएणं संख-पणव-पडह-भेरि-झल्लरिखरमुहि-हुडुक्क-मुख-मुरव-मुअंग-दुंदुभि - णिग्घोसणाइयरवेणं चंपाए णयरीए मझ मज्झेणं णिगच्छइ ।।३१॥ उसके बाद भंभसार का पुत्र राजा कूणिक चम्पा नगरी के बीचों बीच होता हुआ आगे बढ़ा। उसके आगे-आगे पानी से भरी हुई झारियाँ लिये पुरुष चल रहे थे। सेवकों के द्वारा दोनों ओर पंखे झले जा रहे थे। ऊपर श्वेत-छत्र तना हुआ था। चंवर ढुलाये जा रहे थे। वह सब प्रकार की द्युति अर्थात् आभा अथवा युक्ति--परस्पर उचित पदार्थों के संयोग, सब प्रकार का बल-सेना, सभी प्रकार का समुदाय--परिजन आदि, सर्व आदर--समादरपूर्ण प्रयत्न, सर्वविभूति--सब प्रकार के वैभव, सर्व विभूषातरह-तरह की वेषभूषा-वस्त्र, आभूषण आदि के द्वारा सज्जा, सर्व सम्भ्रम-भक्तिजन्य एवं स्नेहपूर्ण उत्सुकता, सर्वपुष्पगन्धमाल्यालंकार-सब प्रकार के रंग-बिरंगे फूल, सुगन्धित पदार्थ, पुष्पों की मालाएं, अलंकार अथवा फूलों की मालाओं से निर्मित आभूषण-आभरण, सर्वतूर्य शब्द सन्निपात-सब प्रकार के वाद्यों की ध्वनि-प्रतिध्वनि, महाऋद्धि-अपने विशिष्ट वैभव, महाद्युति-विशिष्ट आभा, महाबल-विशिष्ट सेना, महा समुदय -- अपने पारिवारिक प्रमुख जन-समुदाय से सुशोभित था। तथा शंख, पात्र-विशेष पर मढ़े हुए ढोल, पटह-नगाड़े, छोटे ढोल, भेरी, झालर, खरमुही-काहला, हुडुक्क - वाद्य-विशेष, मुरज-ढोलक, मृदंग, एवं दुन्दुभि, एक साथ विशेष रूप से बजाये जा रहे थे, या इन सब की ध्वनि गूंज रही थी॥३१॥ The procession was moving through the heart of the city of Campā. He had just in his front a man carrying a wateringcan. Some people were moving fans, some people firmly held white umbrellas. Thus he was attended by small fans, all
SR No.002229
Book TitleUvavaia Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rameshmuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1988
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size20 MB
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