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________________ उववाइय सुत्तं सू० ३१ 163 छोटे-छोटे भाले, अथवा गोफिये, जिनमें रखकर पत्थर फेंके जाते हैं और धनुष हाथ में लिये हुए या धारण किये हुए सैनिक क्रमशः आगे बढ़ चलें । The chariots were followed by men on foot (infantry men) carrying in their hands sundry arms such as, swords, saktis, kuntas, javelines, clubs, bhindimālas and bows. तए णं से कूणिए राया हारोत्ययसुकयरइयवच्छे कुंडलउज्जोविआणणें मउदित्तसिरए णरसीहे णरवई परिंदे णरवसहे मणुअरायवसभकप्पे अब्भंहिअरायते अलच्छीए दिप्पमाणे हत्यिक्खंध व रगए । सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेअवरचामराहि उद्धवमाणीहि उद्धव्वमाणीहि वेसमणो चेव णरवई अमरवई -सण्णिभाइ डिए पहिकित्ती | उसके बाद वह राजा कूणिक था । उसका वक्षस्थल हारों से परिव्याप्त, सुशोभित एवं प्रीतिकर था । उसका मुखमंण्डल कुण्डलों से उद्योतित -- दमक रहा था । उसका मस्तक मुकुट से देदीप्यमान था । वह ( कूणिक राजा ) नरसिंह - मनुष्यों में सिंह के सदृश शौर्यशाली, नरपति -- मनुष्यों के परिपालक, स्वामी, नरेन्द्र - मनुष्यों के इन्द्र अर्थात् परम ऐश्वर्यशाली, नर-वृषभ - मनुष्यों में वृषभ के सदृश स्वीकृत कार्यभार के निर्वाहक, मनुजराजवृषभ -- राजाओं में वृषभ के समान परम धीर और सहिष्णु, चक्रवर्ती के तुल्य थे— उत्तर भारत के आधे भाग को स्वायत्त करने में संप्रवृत्त, राजोचित तेजस्विता रूप लक्ष्मी से वह अत्यधिक देदीप्यमान था । वह राजा श्रेष्ठ हाथी पर आरूढ़ हुआ । कोरंट के फूलों की मालाओं से युक्त छत्र उस राजा ( कूणिक ) पर तना हुआ था । अथवा वह छत्र को धारण किये हुए था । उत्तम, श्वेत चामर -- चंवर डुलाये जा रहे थे । वैश्रमण - यक्षराज कुबेर, नरपति - चक्रवर्ती, अमरपति - देवराज इन्द्र के समान उसकी समृद्धि अति प्रशस्त थी, जिससे उसकी कीर्ति विश्रुत थी ।
SR No.002229
Book TitleUvavaia Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rameshmuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1988
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size20 MB
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