SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (xvi ) उसे बिंबिसार ही मानते हैं तथा सर्व साधारण पाठक भी उसे उसी नाम से पहचानते हैं, जबकि जैन आगमों में श्रेणिक को भिभिसार एवं तत्सदृश अन्य कई नामों से अभिहित किया गया है, पर, उन्हें सामान्यतः कोई नहीं जानता। अधिकांश इतिहासकार उसे भगवान् बुद्ध का अनुयायी ही दृढ़ता से मानते हैं जैसा कि वह प्रमाणित नहीं होता। गवेषक विद्वानों व इतिहासकारों को मैं दोषी नहीं ठहरा रहा ; क्योंकि जैनागम अर्थात प्राकृत . साहित्य के प्रमाण उनके सामने थे ही कहां? यह तो हम सहज ही समझ सकते हैं कि प्राकृत, संस्कृत व हिन्दी जैसी विजातीय भाषाओं पर अधिकार प्राप्त करना पश्चिमी विद्वानों के लिए व उनके माध्यम से गवेषणात्मक काम करना कितना कठिन होता है। फिर भी जैनागमों पर व प्राकृत भाषाओं पर प्रथम शोध कार्य करने का श्रेय हर्मन जैकोबी, आर. पिसल जैसे अनेकानेक पश्चिमी विद्वानों को ही जाता है। भारतीय विद्वानों ने विदेशी भाषाओं का अधिकृत ज्ञान कर उनसे सम्बन्धित संस्कृति व इतिहास का कुछ भी काम किया है ? खैर, 'गई सो गई, अब राख रही को' की किंवदन्ती के अनुसार अब भी जैनागमों पर धड़ल्ले से विदेशी भाषाओं में काम हो तो भारत के इतिहास में ही नहीं, विश्व के इतिहास में भी बहुत कुछ बदलाव आ सकता है तथा संसार उन आगमों के व जैन धर्म के आध्यात्मिक, सामाजिक व ऐतिहासिक महत्व को समझ सकता है। 'प्राकृत भारती अकादमी' ने प्रत्येक आगम को अंग्रेजी अनुवाद के साथ प्रकाशित करने का बीड़ा उठाया है। यह बहुत प्रशस्त है तथा इसके लिए स्वनामविश्रुत श्री डी० आर० मेहता तथा विद्वदवरेण्य महोपाध्याय श्री विनय सागरजी बधाई के पात्र हैं। इससे विदेशी विद्वान् प्राकृत तक भी आसानी से पहुंच पायेंगे तथा इससे गवेषणात्मक अनेक नए-नए आयाम खोलेंगे, ऐसी आशा है । 'उववाइय सुत्तं' का आगम साहित्य में स्थान : अंग, उपांग, मल, छेद व प्रकीर्णक, इन पांच भेदों में वर्तमान आगम साहित्य की परिकल्पना है। १२ अंग तथा १२ उपांग माने गये हैं।
SR No.002229
Book TitleUvavaia Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rameshmuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1988
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy