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________________ 128 Uvavaiya Suttam Su. 27 with men. Some groups were talking in a whisper, some were talking aloud, but there was talk everywhere. People were moving in small groups, often changing position. बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ–एवं खलु देवाणुप्पिा ! समणे भगवं महावीरे आदिगरे तित्थगरे सयंसंबुद्धे पुरिसुत्तमे जाव....संपाविउकामे पुव्वाणुपुग्वि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे, इहेव चंपाए णयरीए बाहिं पुण्णभद्दे चेइए अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । ___ बहुत से मनुष्य परस्पर में चर्चा कर रहे थे, अभिभाषण कर रहे थे, प्रज्ञापित कर रहे थे-जता रहे थे, प्ररूपित कर रहे थे-एक-दूसरे को बता रहे थे। अर्थात् इस प्रकार कार्य-कारण की व्याख्या सहित तर्कसम्मत कथन करते थे। हे देवानुप्रियो ! बात ऐसी है कि श्रमण भगवान् महावीर जो अपने युग में श्रुत धर्म के आद्य प्रवर्तक, तीर्थ कर-श्रमण-श्रमणी, श्रावक-श्राविका रूप धर्म तीर्थ के प्रतिष्ठापक, स्वयंबुद्ध-स्वयं बिना किसी अन्य निमित्तों के बोध प्राप्त, पुरुषोत्तम-पुरुषों में उत्तम, .....यावत् सिद्धिगति रूप स्थान की प्राप्ति के लिये समुद्यत भगवान् महावीर क्रमशः आगे से आगे विचरण करते हुए, ग्रामानुग्राम विहार--एक गांव से दूसरे गांव का स्पर्श . करते हुए यहां आये हैं, सम्प्राप्त हुए हैं, यहाँ समवसृत हुए हैं—पधारे हैं। यहीं चम्पा नगरी के बाहर पूर्णभद्र चैत्य में श्रमण चर्या के योग्य स्थान ग्रहण कर संयम तथा तप से अपनी आत्मा को भावितअनुप्राणित करते हुए विराजित हैं, या आत्माराम में विहार कर रहे हैं। Some were talking to others very casually, some seriously, some were expressing the same theme in different words. Said they, “Oh beloved of the gods! The fact is that śramaņa Bhagavān Mabāvira, who is self-enlightened, the founder, the creator of the order, the best among men, till one who is
SR No.002229
Book TitleUvavaia Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rameshmuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1988
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size20 MB
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