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उववाइये सुत्तं सू० २०
89 __ से किं तं मणविणए ? .
मणविणए दुविहे पण्णत्ते । तं जहा-पसत्थ-मणविणए अपसत्थमण-विणए।
वह मनोविनय क्या है ? उसके कितने भेद हैं ? ___मनोविनय दो प्रकार का बतलाया गया है, जो इस प्रकार है(१) प्रशस्त मनोविनय, (२) अप्रशस्त मनोविनय ।
What is humility of the mind ? . It has two types, viz., wholesome and unwholesome.
से किं तं अपसत्थ-मणविणए ? .
अपसत्थ-मणविणए जे अ मणे सावज्जे सकिरिए सकक्कसे कडुए णिठुरे फरसे अण्हयकरे छेयकरे भेयकरे परितावणकरे उद्दवणकरे भूओवघाइए तहप्पगारं मणो णो पहारेज्जा। से तं अपसत्थमणोविणए ।
वह अप्रशस्त मनोविनय क्या है ?
जो मन सावद्य-पाप अथवा गहित कर्मयुक्त, सक्रिय-प्राणातिपात, मृषावाद आदि आरंभ क्रिया सहित, कर्कश, कटु-अपने लिये और अन्य के लिये अनिष्टकारक, निष्ठुर-कठोर, परुष-स्नेह-सद्भावना से रहित, आश्रवकर--अशुभ कर्मग्राही, छेदकर-किसी के हाथ, पैर आदि अंगों को काटने के दुर्भाव रखने वाला, भेदकर - नासिका आदि अंग काट डालने का बुरा भाव रखने वाला, परितापनकर-प्राणियों को संतप्त करने के भाव रखने वाला, उपद्रवणकर-मरणान्तिक कष्ट देने अथवा धन-संपत्ति हर लेने का दुर्भाव रखने वाला, भूतोपघातिक-जीवों का घात करने का बुरा विचार रखने वाला होता है, ऐसी मनःस्थिति लिये रहना अप्रशस्त मनोविनय है, वैसा मन धारण नहीं करना चाहिये। यह अप्रशस्त मनोविनय का स्वरूप है।