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Uvavāiya Suttam Su. 20
से किं तं सुस्सुसणाविणए ?
सुस्सुसणाविणए अणेगविहे पण्णत्ते । तं जहा -- अब्भुट्ठाणे इ वा आसणाभिग्गहे इ वा आसणप्पदाणे इ वा सक्कारे इ वा सम्माणे इवा किइकम्मे इ वा अंजलिपग्गहे इ वा एंतस्स अणुगच्छणया ठिअस्स पज्जुवा सणया गच्छंतस्स पडिसंसाहणया । से तं सुस्सुसणाविए ।
वह शुश्रूषणा-विनय क्या है ? वह कितने प्रकार का है ? शुश्रूषणा-विनय अनेक प्रकार का कहा गया है। जो इस प्रकार है : अभ्युत्थान —— गुरुजनों या गुणीजनों के आने पर उन्हें आदर देने हेतु खड़े होना, आसनाभिग्रह - - गुरुजन जहाँ बैठना चाहें, वहाँ पर आसन बिछाना -- रखना, आसन - प्रदान -- गुरुजनों को आसन देना, गुरुजनों का सत्कार करना, सम्मान करना, यथाविधि वन्दन- नमन करना, कोई बात स्वीकार या अस्वीकार करते समय हाथ जोड़ना, आते हुए गुरुजनों के सामने जाना, बैठे हुए गुरुजनों के समीप बैठना, उनकी सेवा करना, जाते हुए गुरुजनों को पहुँचाने जाना । यह शुश्रूषणा - विनय का स्वरूप है ।
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What is śuśruşanā vinaya ?
It has many types, viz., to stand up when an elder or superior person arrives, to carry cushion/stool for elders to sit on, and to spread it wherever desired, to offer them clothes, to show them respect, to pay them homage and obeisance as prescribed, to fold palms at the time of agreeing or disagreeing, to receive elders by going a few steps forward, to be in full attention in the presence of the elders, and to go with them a few steps when they go and see them off with due respect. Such is śuśruşaṇa-vinaya.
से किं तं अणच्चासायणाविणए ?
अणच्चासायणाविणए पणतालिसविहे पण्णत्तें । तं जहा - अरहंताणं