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Uvavaiya Suttam Sh. 19 से कि तं रस-परिच्चाए ?
रस-परिच्चाए अणेगविहे पण्णत्ते । तं जहा-णिब्वि(य)तिए पणीअ - रस - परिच्चाए आयंबिलए आयामसित्थभोई अरसाहारे विरसाहारे अंताहारे पंताहारे लूहाहारे। से तं रसपरिच्चाए ।
वह रस परित्याग क्या है ? उसके कितने भेद हैं ?
रस परित्याग के अनेक भेद कहे गये हैं जो इस प्रकार हैं : निर्विकृतिकघृत, दूध, दही, तथा गुड़-शक्कर से रहित आहार करना। प्रणीत-रस परित्याग-जिससे घृत, दूध, चासनी आदि की बून्दें टकपती हों ऐसे आहार का त्याग करना। आयंबिल-आचामाम्ल-मिर्च-मसाले और घृत, दूध, दही, तेल, गुड़ आदि से रहित रोटी, भात आदि रूखा-सूखा पदार्थ अथवा भुना हुआ अन्न अचित्त पानी में भिगोकर दिन में एक बार खाना। आयाममसिक्थभोजी-ओसामान तथा उसमें स्थित अन्न-कण सीथ मात्र . का आहार करना। अरसाहार-रस रहित या हींग, जीरा आदि से बिना छौंका हुआ आहार ग्रहण करना। विरसाहार-बहुत पुराने अन्न से, जो स्वभावतः स्वाद अथवा रस से रहित हो गया हो, बना हुआ आहार ग्रहण करना। अन्ताहार-अत्यन्त ही हल्की जाति के अन्न से बने हुए आहार को ग्रहण करना। प्रान्ताहार-भोजन कर लेने के पश्चात् बचाखुचा आहार ग्रहण करना या बहुत ही हल्की जाति के अन्न से बना हुआ आहार ग्रहण करना। रुक्षाहार-रुखा-सूखा आहार लेना। यह रस परित्याग का स्वरूप कहा गया है। .
What is renunciation of taste ?
It has many types, viz., giving up food containing clarified butter ( ghee), oil, milk, curd or jaggery, or giving up food wherefrom ( being excessive ) clarified butter, oil, (till jaggery) drops ; or living on food which is not spiced or on fried grains/puffed grains soaked in water, or one who lives on grain particles ( broken grains); or one who lives on food without good taste, or one who