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नरिकामामिकयोरित्वं निपात्यते । नरिका । मामिका ॥११२॥ नरान् कायतीति नरिका ‘आतो डोऽह्वावामः ।५।१७६। सूत्रात् ङः, आप् । ममेयं मामिका ‘वा युष्म०' ।६।३।६७। सत्रात्आप अप्रत्ययः, अस्मदो ममक आदेशश्च, आत् ।२।४।१८। सूत्रात् । संज्ञाया तु केवल०' ।२।४।२९। सूत्रात नित्यं डीः । ककारस्याप्रत्ययसम्बन्धित्वापूर्वेणाप्राप्ते वचनम् ।।११२॥
तारकावर्णकाऽष्टका ज्योतिस्तान्तव-पितृदेवत्ये २।४।११३॥ एतेष्वर्थेष यथासंख्यमेते इवर्जा निपात्यन्ते । तारका ज्योतिः। वर्णका प्रावरणविशेषः । अष्टका पितृदेवत्यं कर्म ॥११३॥ तरतेणके तारका ज्योतिः, तच्च नक्षणं कनोनिका च, नक्षत्रमेवेत्यन्ये, अन्यत्र तारिका । वर्णंयतीति णके वर्णका-तान्तवः प्रावरणविशेषः,
अन्यत्र वर्णिका भागुरिः लोकायतस्य । अश्नोतेरोणादिके तककि, अष्टका : पितृदेवत्यं कर्म, अन्यत्राष्टौ द्रोणाः परिमाणमस्या इति के अष्टिका खारी
संख्या०' ।६।४।१३०। सूत्रात्कः, 'अस्या०' '२।४।१११। सूत्रीदिकारः । पितृदेवतार्थं कर्मति ‘देवतान्तात् तदर्थे ।७।१।२२। सूत्रात् ये पितृदेवत्यसिद्धम् ।।११३॥
. “इति द्वितीयाध्याये चतुर्थः पादः समाप्तः"
श्री पर्युषण में योजी जाती हुई भाषण-श्रेणी . आज ऐसे मंगलमय और मन्त्राक्षरों से परिपूर्ण श्री कल्पसूत्र के श्रवण से जैन वंचित रह जाय, ऐसा प्रचार और ऐसी प्रवृत्तियां भी चल रही है और (सेवा समिति) युवक संघ आदि के नाम से योजित की जाती भाषण-श्रेणी, यह इसी के ही एक प्रतीकरूप है। पहले तो, यह श्री कल्पसूत्र, श्रावक श्राविकाओं को सुनने भी नहीं मिलता था। जबकि आज यह महाभाग्य से यह शक्य बना है, जबकि इसी के श्रवण से वंचित