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________________ (२७८) गुरो गौरवाहें वर्तमानस्य द्वावेकाश्चर्थो बहुवद्वा स्यात् । युवां गुरू। यूयं गुरवः । एष मे पिता । एते मे पितरः।१२४॥ . . एक एव शब्द: एलिङ्ग, द्विलिङ्ग, त्रिलिङ्ग वा भजते, एक एव शब्दः एकवचनं, द्विवचनं, बहुवचनं वा भजते, लिङ्गव्यत्ययोऽपि भवति । यथा आप एकस्यां जलकणिकायापि वहुवचनान्तः, दारशब्दः गृहिणीवाच: कोपि पुल्लिङ्ग इत्यादि । इद सूत्र तु गौरवाहे बहुवचनं विदधाति ॥१२४॥ ॥ इति दिवतीयाध्यायस्य दिवतीय पादः ॥ प्रश्न- धर्मी आज अल्प हो रहे हैं तो रचनात्मक 1 करने की क्या जरूरत नहीं है? ] उत्तर- धर्मी हमेशा अल्प ही रहने वाले है, पांचवे ] - [.. आरे में तो धर्मी दिन प्रतिदिन घटने वाले ) ।: ही है, परन्तु भगवान का शासन पांचवे ] [ . आरे के अंत तक रहने वाला है वह थोड़ों ] .............से ही चलने वाला हैं, टोले से नहीं, टोलों ] [ से ज्यादा कार्य नहीं होता ! ..] بما تماس با ما با سا نان با ساااا
SR No.002227
Book TitleSiddh Hemchandra Vyakaranam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanratnavijay, Vimalratnavijay
PublisherJain Shravika Sangh
Publication Year
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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