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प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन ..
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३६. विरुद्ध हेत्वाभास-जिस हेतु का साध्य के विरुद्ध के साथ अविना- .. भाव निश्चित होता है उसे विरुद्ध हेत्वाभास कहते हैं । जैसे यह कहना कि शब्द नित्य है, कृतक होने से । यहाँ कृतकत्व हेतु विरुद्ध हेत्वाभास है । ३७. अनैकान्तिक हेत्वाभास-जो हेतु पक्ष, सपक्ष और विपक्ष-इन तीनों में रहता है उसे अनैकान्तिक हेत्वाभास कहते हैं। जैसे यह कहना कि शब्द अनित्य है, प्रमेय होने से । यहाँ प्रमेयत्व हेतु अनैकान्तिक हेत्वाभास है। ३८. अकिञ्चित्कर हेत्वाभास-साध्य के सिद्ध होने पर और प्रत्यक्षादि प्रमाणों से बाधित होने पर भी उस साध्य की सिद्धि के लिए प्रयुक्त हेत अकिञ्चित्कर हेत्वाभास कहलाता है। ३९. प्रतिज्ञा-किसी वस्तु का अनुमान करते समय पहले प्रतिज्ञा की जाती है । जैसे यह पर्वत अग्निमान् है, ऐसा कहना प्रतिज्ञा है । ४०. धर्मी-जो किसी प्रमाण से प्रसिद्ध होता है उसे धर्मी कहते हैं । धर्मी का दूसरा नाम पक्ष भी है । पर्वत में अग्नि को सिद्ध करते समय पर्वत धर्मी होता है । वह साध्यधर्मविशिष्ट होने के कारण धर्मी कहलाता है । ४१. पक्ष-जहाँ साध्य की सिद्धि की जाती है उसे पक्ष कहते हैं । पर्वत में अग्नि को सिद्ध करते समय पर्वत पक्ष होता है । दूसरे शब्दों में धर्म और धर्मी के समुदाय का नाम पक्ष है । ४२. सपक्ष-जो पक्ष के समान होता है अर्थात् जहाँ साध्य ( अग्नि ) और साधन ( धूम ) दोनों पाये जाते हैं उसे सपक्ष कहते हैं । जैसे महानस सपक्ष है। ४३. विपक्ष-जहाँ साध्य और साधन दोनों का अभाव पाया जाता है उसे विपक्ष कहते हैं । जैसे नदी विपक्ष है । ४४. पक्षाभास-अनिष्ट, प्रत्यक्षादिप्रमाणों से बाधित और सिद्ध को पक्ष अर्थात् साध्य बतलाना पक्षाभास कहलाता है । ४५. उदाहरण-जहाँ-जहाँ धूम होता है वहाँ-वहाँ अग्नि होती है । जैसे महानस । इस प्रकार के कथन को उदाहरण कहते हैं । यहाँ महानस दृष्टान्त है और उसका वचन उदाहरण कहलाता है । ४६. उपनय-पक्ष में हेतु के उपसंहार करने को उपनय कहते हैं । जैसे यह पर्वत धूमवान् है, ऐसा कहना उपनय कहलाता है ।