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षष्ठ परिच्छेद : सूत्र ३५-४१
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बाधित साध्य को सिद्ध करने के लिए प्रयुक्त सभी हेतुओं को अकिंचित्कर हेत्वाभास समझना चाहिए ।
· यह अकिंचित्कर दोष हेतु के लक्षण का विचार करते समय ही होता है, वाद ( शास्त्रार्थ ) के समय नहीं । इसे आगे के सूत्र में बतलाया गया
लक्षण एवासौ दोषो व्युत्पन्नप्रयोगस्य पक्षदोषेणैव दुष्टत्वात् ॥३९॥
यह अकिंचित्कर हेत्वाभास नामक दोष हेतु का लक्षण बतलाने के समय ही होता है, वादकाल में नहीं । क्योंकि व्युत्पन्न पुरुष का प्रयोग तो पक्ष के दोष से ही दूषित हो जाता है । इसका तात्पर्य यह है कि वाद के करने में तो विद्वानों का ही अधिकार होता है । अतः विद्वान् पहले तो अकिंचित्कर हेत्वाभास का प्रयोग करेंगे ही नहीं और कदाचित् ऐसा प्रयोग करें भी तो वह पक्षाभास ही माना जायेगा, हेत्वाभास नहीं । अर्थात् साध्य के सिद्ध होने पर ऐसे पक्ष का प्रयोग सिद्ध पक्षाभास और साध्य के बाधित होने पर ऐसे पक्ष का प्रयोग बाधित पक्षाभास होगा । वहाँ अकिंचित्कर हेत्वाभास बतलाने की कोई आवश्यकता नहीं है । इस प्रकार हेत्वाभासों का वर्णन समाप्त हुआ। . दृष्टान्ताभास : . अन्वय और व्यतिरेक के भेद से दृष्टान्ताभास दो प्रकार का है । उनमें से पहले अन्वय दृष्टान्ताभास के भेद बतलाते हैं
दृष्टान्ताभासा अन्वयेऽसिद्धसाध्यसाधनोभयाः ॥४०॥ ._ अन्वय दृष्टान्ताभास के तीन भेद हैं-असिद्धसाध्य, असिद्धसाधन
और असिद्ध उभय । इनको क्रमशः साध्यविकल, साधनविकल और उभयविकल भी कहते हैं । - इन तीनों ही अन्वय दृष्टान्ताभासों के उदाहरणों को एक ही अनुमान में बतलाने के लिए सूत्र कहते हैंअपौरुषेयः शब्दोऽमूर्तत्वादिन्द्रियसुखपरमाणुघटवत् ॥४१॥ - शब्द अपौरुषेय है, अमूर्त होने से, जैसे इन्द्रियसुख, परमाणु और घट । इस अनुमान में शब्द में अपौरुषेयत्व साध्य है और अमूर्तत्व हेतु है । यहाँ इन्द्रियसुख का दृष्टान्त साध्यविकल दृष्टान्ताभास है, क्योंकि वह