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आयारदसा
सूत्र १३
मासियं णं भिक्खु-पडिमं पडिवनस्स कप्पति तओ संथारगा अणुण्णवेत्तए, तं चेव ।
मासिकी भिक्षु-प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार को तीन प्रकार के संस्तारकों की आज्ञा लेना कल्पता है, यथा
पूर्ववत् (सूत्र १२ के समान)
सूत्र १४
मासियं णं भिक्खु-पडिमं पडिवनस्स कप्पति तओ संथारगा उवाइणित्तए, तं चेव ।
मासिकी भिक्षु-प्रतिमा प्रतिपन्न अनगार को तीन प्रकार के संस्तारक ग्रहण करना कल्पता है यथा
पूर्ववत् (सूत्र १२ के समान)।
सूत्र १५
. मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवनस्स अणगारस्स इत्थी वा, पुरिसे वा उवस्सयं उवागच्छेज्जा ।
णो से कप्पति तं पडुच्च निक्खमित्तए वा, पविसित्तए वा।
मासिकी भिक्षु-प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार के उपाश्रय में यदि कोई (असदाचारी) स्त्री या पुरुष आकर अनाचार का आचरण करें तो उन्हें देखकर उसे उपाश्रय से निष्क्रमण या प्रवेश करना नहीं कल्पता है।
विशेषार्थ-जिस स्थान पर प्रतिमाधारी मुनि ठहरा हुआ हो वहाँ दिन या रात में दुराचारी स्त्री और पुरुष आकर दुराचार का सेवन करें तो उन्हें देखकर मुनि को उपाश्रय से बाहर नहीं जाना चाहिए, बल्कि आत्म-चिन्तन या स्वाध्याय में रत रहना चाहिए।
प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार यदि उपाश्रय से बाहर गोचरी या आतापन-सेवन आदि के लिए कहीं गया हो और पीछे से उस उपाश्रय में स्त्री और पुरुष आकर बैठ जावें या अनाचार का आचरण करते हुए दिखाई दें तो अनगार को उस उपाश्रय में प्रवेश करना नहीं कल्पता है।