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मासिकी भिक्षु प्रतिमा प्रतिपन्न अनगार को चार भाषाएँ बोलना कल्पता "है, यथा
१ याचनी, २ पृच्छनी, ३ अनुज्ञापनी और पृष्ठ - व्याकरणी ।
आयारदसा
विशेषार्थ - १ दूसरे से आहार, वस्त्र, पात्र आदि मांगने के लिए बोलना " याचनी" भाषा है |
२ शंका का समाधान करने के लिए गुरु आदि से प्रश्न करना " पृच्छनी" भाषा है ।
अथवा किसी व्यक्ति से मार्ग पूछना "पृच्छनी" भाषा है ।
३ गुरु आदि से गोचरी आदि की आज्ञा लेने के लिए बोलना, अथवा शय्यातर ( गृहस्वामी) से स्थानादि की आज्ञा लेने के लिए बोलना "अनुज्ञापनी" भाषा है ।
४ किसी व्यक्ति द्वारा प्रश्न किए जाने पर उत्तर देने के लिए बोलना "पृष्ठ - व्याकरणी" भाषा है ।
प्रतिमा - प्रतिपन्न अनगार को इन चार भाषा के अतिरिक्त अन्य भाषा बोलना नहीं कल्पता है ।
सूत्र ६
मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स कप्पइ तओ उवस्सया पडिलेहित्तए, तं जहा
१ अहे आराम - गिहंसि वा
२ अहे वियड - हिंसि वा
३ अहे रुक्खमूल - हिंसि वा
मासिकी भिक्षु प्रतिमा प्रतिपन्न अनगार को तीन प्रकार के उपाश्रयों का प्रतिलेखन करना कल्पता है, यथा
१ अधः आरामगृह – उद्यान में अवस्थित गृह,
२ अधः विवृतगृह = चारों ओर से अनाच्छादित गृह,
३ अधः वृक्षमूलगृह = वृक्ष के नीचे या वृक्ष के नीचे बना गृह ।