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________________ छेदसुत्ताणि णो दुहं णो तिरहं णो चउन्हं, णो पंचण्हं, णो गुठिवणीए, जो बालवच्छाए, णो दारगं पेज्जमाणीए, ६८ णो से कई अंतो एलुयस्स दो वि पाए साहट्टु दलमाणीए, ो बह एस्स दो वि पाए साहट्टु दलमाणीए, अहं पुण एवं जाणेज्जा, एगं पादं अंतो किच्चा, एगं पादं बहिं किच्चा एयं विक्वं भत्ता एवं दलयति एवं से कप्पति पडिगाहित्तए ; एवं से नो दलयति, एवं से नो कप्पति, पडिगाहित्तए । मासिकी भिक्षु प्रतिमा प्रतिपन्न अनगार को एक दत्ति भोजन की ओर एक दत्ति पानी की लेना कल्पता है - वह भी अज्ञातकुल से अल्पमात्रा में दूसरों के लिए बना हुआ, अनेक द्विपद, चतुष्पद, श्रमण, ब्राह्मण, अतिथि, कृपण और वनीपक ( भिखारी ) आदि के भिक्षा लेकर चले जाने के बाद ग्रहण करना कल्पता है । जहाँ एक व्यक्ति भोजन कर रहा हो वहाँ से आहार- पानी की दत्ति लेनाकल्पता है किन्तु दो, तीन, चार या पांच व्यक्ति एक साथ बैठकर भोजन करते हों वहां से लेना नहीं कल्पता है । गर्भिणी, बालवत्सा और बच्चे को दूध पिलाती हुई से आहार -पानी की दत्ति ना नहीं कल्पता है । जिसके दोनों पैर देहली के अन्दर हों या दोनों पैर देहली के बाहर हों ऐसी स्त्री से आहार पानी की दत्ति लेना नहीं कल्पता है, किन्तु यह ज्ञात हो जाय कि एक पैर देहली के अन्दर है और एक पैर बाहर है तो उसके हाथ से लेना कल्पत है। यदि वह न देना चाहे तो उसके हाथ से लेना नहीं कल्पता है । विशेषार्थ - प्रतिमा प्रतिपन्न अनगार के पात्र में दाता एक अखण्डधारा से जितना भक्त या पानी दे उतना भक्त-पान "एक दत्ती" कहा जाता है । सूत्र ५ मासियं णं भिक्खु-पडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स तओ गोयर - काला पण्णत्ता, तं जहा १ आदिमे, २ मज्झे, ३ चरिमे । १ आदि चरेज्जा, नो मज्झे चरेज्जा, णो चरमे चरेज्जा । २ मज्झे चरिज्जा, नो आदि चरिज्जा, नो चरिमे चरेज्जा । ३ चरिमे चरेज्जा, नो आदि चरेज्जा, नो मज्झिमे चरेज्जा ।
SR No.002225
Book TitleChed Suttani Aayar Dasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherAagam Anyoug Prakashan
Publication Year1977
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size13 MB
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