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________________ छेदाण उस मिथ्यादृष्टि की जो बाहिरी परिषद् होती है, जैसे दास (क्रीत किंकर) प्रेष्य (दूत) भृतक (वेतन से काम करने वाला) भागिक ( भागीदार कार्यकर्ता) कर्मकर (घरेलू काम करने वाला) या भोगपुरुष ( उसके उपार्जित धन का भोग करने वाला) आदि, उनके द्वारा किसी अतिलघु अपराध के हो जाने पर स्वयं ही भारी दण्ड देने की आज्ञा देता है । ४८ जैसे - ( हे पुरुषो ), इसे डण्डे आदि से पीटो, इसका शिर मुंडा डालो, इसे तर्जित करो, इसे थप्पड़ लगाओ, इस के हाथों में हथकड़ी डालो, इसके पैरों में बेड़ी डालो, इसे खोड़े में डालो, इसे कारागृह (जेल) में बन्द करो, इसके दोनों पैरों को सांकल से कसकर मोड़ दो, इसके हाथ काट हो, इसके पैर काट दो, इसके कान काट दो, इसकी नाक काट दो, इसके ओठ काट दो, इसका शिर काट दो, इसका मुख छिन्न-भिन्न कर दो, इसका पुरुष चिह्न काट दो, इसका हृदय विदारण करो। इसी प्रकार इसके नेत्र, वृषण (अण्डकोष ) दशन (दांत) वदन (मुख) और जीभ को उखाड़ दो, इसे रस्सी से बांध कर वृक्ष आदि पर लटका दो, इसे बांध कर भूमि पर घसीटो, इसका दही के समान मन्थन करो, इसे शूली पर चढ़ा दो, इसे त्रिशूल से भेद दो, इसके शरीर को शस्त्रों से छिन्न-भिन्न कर उस पर क्षार ( नमक, सज्जी आदि खारी वस्तु) भर दो, इसके घावों में डाभ ( तीक्ष्ण घास कास) चुनाओ इसे सिंह की पूँछ से बाँध कर छोड़ दो, इसे वृषभ सांड की पूंछ से बाँध कर छोड़ दो, इसे दावाग्नि में जलादो, इसके मांस के कौडी के समान टुकड़े बना कर काक- गिद्ध आदि को खिला दो, इसका खान-पान बन्द कर दो, इसे यावज्जीवन बन्धन में रखो, इसे किसी भी अन्य प्रकार की कुमौत से मार डालो । सूत्र १० वयसा अभितरिया परिसा भवति, तं जहामाया इवा, पिया इ वा, भाया इ वा, भगिणी इ वा, भज्जा इवा, धूया इ वा, सुण्हा इ वा तेसि पि य णं अण्णयरंसि अहा लहुयंसि अवराहंसि सयमेव गरुयं दंडं निवत्तेति, तं जहा सीयोग - वियसि कायं बोलित्ता भवइ ; उसिणोदग-वियडेण कार्य असिंचित्ता भवइ ; aafone कार्य उहित्ता भवइ ;
SR No.002225
Book TitleChed Suttani Aayar Dasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherAagam Anyoug Prakashan
Publication Year1977
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size13 MB
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