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छेवसुत्ताणि आचमन (शुद्धि) करना चाहिए। रत्नाधिक से पूछे गये प्रश्न का उत्तर भी तत्परता पूर्वक विनय के साथ देना चाहिए । भोजन के समय भी रत्नाधिक का निमंत्रण पहिले करके पीछे और अन्य साधुओं को भोजनार्थ बुलाना चाहिए। यदि कदाचित् एक ही पात्र में भोजन का अवसर आवे तो रस लोलुप होकर शैक्ष को उत्तम भोजन एवं व्यंजन नहीं खाना चाहिए। रत्नाधिक जब कभी बुलायें, या किसी बात को पूछे तो अपने आसन से उठकर विनयपूर्वक ही समुचित उत्तर देना चाहिए। किसी भी रत्नाधिक से 'तू', तुम आदि शब्द नहीं, बोलना चाहिए। इसके विपरीत करने वाला शैक्ष आशातना दोष का भागी होता है ।
रत्नाधिक और रात्निक ये दोनों ही शब्द एकार्थक हैं।
तीसरी आशातना दशा समाप्त ।