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मुनिश्री कन्हैयालाल जी 'कमल' प्रारम्भ से ही आगमों एवं उनके दुर्लभ तथा दुर्बोध व्याख्याग्रन्थों का सम्पादन तथा विवेचन कर पाठकों को आगम-रहस्य समझाने में संलग्न रहे हैं ।
'निशीथभाष्य' जैसे विशाल काय ग्रंथ का सम्पादन एवं प्रकाशन आपकी श्रमशील सूक्ष्मप्रज्ञा का परिचायक है । और गणितानुयोग, द्रव्यानुयोग जैसे आगम वर्गीकरण साहित्य का सम्पादन आपकी अनूठी सूझबूझ का उदाहरण है।
आप द्वारा संपादित 'जैनागम निर्देशिका' तो जैनविद्या के हजारों भारतीय एवं पाश्चात्य-जिज्ञासुओं द्वारा ‘अद्भुत ज्ञानकोष' माना गया है ।
आप श्री इतने गंभीर विद्वान होकर भी बड़े सरल, सहज, मिलनसार, विनम्र वृत्ति और दीर्घपरिश्रमी निष्ठावान तथा प्राचारनिष्ठ श्रमण है ।