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आयारवसा
किया और उस पूर्वकृत निदान शल्यों की आलोचना प्रतिक्रमण करके...यावत्... यथायोग्य प्रायश्चित स्वरूप तप स्वीकार किया ।
सूत्र ५४
ते णं काले णं ते णं समए णं समणे भगवं महावीरे रायगिहे नयरे, गुणसिलए चेइए बहूणं समणाणं, बहूणं समणीणं, बहूणं सावयाणं, बहूणं सावियाणं, बहणं देवाण, बहणं देवीण सदेव-मणुयासुराए परिसाए मझगए. एवमाइक्खइ, एवं भासइ एवं पण्णवेइ, एवं पहवेइ।
उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर ने राजगृह नगर के बाहर गुणशील चैत्य में एकत्रित देव-मनुष्य आदि परिषद के मध्य में अनेक श्रमणश्रमणियों, श्रावक-श्राविकाओं को इस प्रकार आख्यान, भाषण, प्रज्ञापन एवं प्ररूपण किया।
सूत्र ५५
आयतिठाणं णामं अज्जो ! अज्झयणं स-अटें, स-हेउं स-कारणं, स-सुत्तं, स-अत्थं, स-तदुभयं, स-वागरणं च भुज्जो भुज्जो उवदंसेइ।
त्ति बेमि। हे आर्य ! भगवान महावीर ने इस आयतिस्थान नाम के अध्ययन का अर्थ हेतु एवं व्याकरण युक्त तथा सूत्र अर्थ और स्पष्टीकरण युक्त सूत्रार्थ का अनेक बार उपदेश किया।
आयति-ठाण-णामं दसमी दसा समत्ता
(दसासुयक्खंधो समत्तो) आयति-स्थान नाम की दशवी दशा समाप्त
आचारदशा श्रुतस्कन्ध समाप्त