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-: प्रस्तुत पुस्तक :
जैन-परम्परा के श्रागमों में छेद-सूत्रों का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान रहा है। जैन-संस्कृति का सार श्रमरणधर्म है। श्रमरण-धर्म की सिद्धि के लिए प्राचार की साधना अनिवार्य है । प्राचार-धर्म के निगूढ़ रहस्य चौर सूक्ष्म क्रिया-कलाप को समझने के लिए छेद-सूत्रों का अध्ययन अनिवार्य हो जाता है । जीवन, जीवन है । साधक के जीवन में अनेक अनुकूल तथा प्रतिकूल प्रसंग उपस्थित होते रहते हैं । उस विषम समय में किस प्रकार निर्णय लिया जाए इस बात का सम्यक् निर्णय एकमात्र छेद-सूत्र ही कर सकते हैं। संक्षेप में छेद- सूत्र - साहित्य जैन श्राचार की कुञ्जी है, जैन-विचार की अद्वितीय निधि है, जैन-संस्कृति की गरिमा है और जैन साहित्य की महिमा है ।
दशाश्रुतस्कन्ध-सूत्र पर अथवा आचारदशा पर न कोई भाष्य उपलब्ध है, न संस्कृत टीका और टब्बा हो । इस पर नियुक्ति व्याख्या तथा चूरिंग व्याख्या उपलब्ध है । परन्तु ये दोनों ही अत्यन्त संक्षिप्त हैं ।
पंण्डित प्रवर, प्रागमधर मुनिश्री कन्हैयालाल जी 'कमल' ने आचारदशा का सम्पादन एवं मूलस्पर्शी अनुवाद बहुत ही सरल और सुन्दर किया है। श्रमणाचार के अनेक उलझे हुए प्रश्नों पर उन्होंने भाष्य एवं चूरि यादि प्राचीन ग्रन्थों के अनुशीलन के आधार पर अपना तटस्थ समाधान-परक चिन्तन भी दिया है। अल्प शब्दों में विवादात्मक प्रश्नों का सम्यक् समाधान करना विवेचन की कुशलता है। मुनिश्रीजी इस कला में सफल हुए हैं । आगम-साहित्य पर वे वर्षों से कुछ-न-कुछ लिखते रहे हैं । परन्तु मेरी दृष्टि में चार छेद सूत्रों पर जो अभी लेखन कार्य किया है, वह आगम-साहित्य की परम्परा में चिरस्थायी एवं गौरवपूर्ण कहा जा सकता है ।
- विजय मुनि शास्त्री