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आयारसा
से णं तत्थ देवे भवइ महड्डिए जाव-चिरट्ठितिए तओ देवलोगाओ, आउक्खएणं, भवक्खएणं, ठिइक्खएणं, अणंतरं चयं चइत्ता, जे इमे उग्गपुत्ता महा-माउया', भोगपुत्ता महा-माउया, तेसि णं अन्नयरंसि कुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाति । से णं तत्थ वारए भवइ, सुकुमाल-पाणि-पाए जाव-सुरुवे ।
तए णं से दारए उम्मुक्क-बालभावे, विण्णाणपरिणयमित्त, जोवणगमणुप्पत्ते,
सयमेव पेइयं दायं पडिवज्जति । तस्स णं अतिजायमाणस्स वा पुरओ जावमहं दासी-दास जाव-किं ते आसगस्स सदति ?
हे आयुष्मान् श्रमणो ! वह निर्ग्रन्थ निदान करके उस निदान शल्य (पाप) सम्बन्धी संकल्पों की आलोचना एवं प्रतिक्रमण किये बिना जीवन के अन्तिम क्षणों में देह छोड़कर किसी एक देवलोक में महान् ऋद्धि वाले यावत् उत्कृष्ट स्थिति वाले देव के रूप में उत्पन्न होता है । .. आयु, भव और स्थिति के क्षय से वह उस देवलोक से च्यव (दिव्य देह छोड़) कर शुद्ध मातृ-पितृ पक्ष वाले उग्र कुल या भोग कुल में पुत्र रूप में उत्पन्न होता है। ___ वहां वह बालक सकुमार हाथ-पैर वाला....यावत्,..सुन्दर रूप वाला होता है।
बाल्यकाल बीतने पर तथा विज्ञान की वृद्धि होने पर वह यौवन को प्राप्त होता है । उस समय वह स्वयं पैतृक सम्पत्ति को प्राप्त होता है।
प्रासाद से आते-जाते समय उसके आगे-आगे उत्तम अश्व चलते हैं... यावत्...दास-दासियों के वृन्द से वह घिरा रहता है...यावत्...आपको कौन से पदार्थ प्रिय हैं ?
सूत्र २४ ___ तस्स णं तहप्पगारस्स पुरिसजायस्स तहारूवे समणे वा माहणे वा उभओ कालं केवलि-पण्णत्तं धम्ममाइक्खेज्जा ?
हंता ! आइक्ज्ज्जा !
१ साउया।