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( १४ ) पर संस्कृत, हिन्दी और गुजराती में विस्तृत व्याख्याएँ लिखी हैं, जो आज सर्वत्र उपलब्ध होती हैं । यह परम्परा अभी चल रही है । आचार-दशा की व्याख्या
दशाश्रुतस्कन्ध-सूत्र पर अथवा आचारदशा पर न कोई भाष्य उपलब्ध है, न संस्कृत टीका और न टब्बा ही। इस पर नियुक्ति व्याख्या तथा चूणि व्याख्या उपलब्ध है। परन्तु ये दोनों ही अत्यन्त संक्षिप्त हैं । आचारदशा की नियुक्ति व्याख्या में असमाधि-स्थान, आशातना, चित्त समाधि-स्थान, प्रतिमा तथा गणिसम्पदा आदि शब्दों की सुन्दर व्याख्याएँ की गई हैं । गणि सम्पदाओं का वर्णन अत्यन्त रोचक, सुन्दर तथा ज्ञानवर्धक कहा जा सकता है । प्रस्तुत सम्पादन एवं अनुवाद
पण्डित प्रवर, आगमधर मुनिश्री कन्हैयालाल जी 'कमल' ने आचारदशा का सम्पादन एवं मूलस्पर्शी अनुवाद बहुत ही सरस और सुन्दर किया है । श्रमणाचार के अनेक उलझे हुए प्रश्नों पर उन्होंने भाष्य एवं चूणि आदि प्राचीन ग्रन्थों के अनुशीलन के आधार पर अपना तटस्थ समाधान-परक चिन्तन भी दिया है। अल्प शब्दों में विवादात्मक प्रश्नों का सम्यक् समाधान करना विवेचन की कुशलता है । मुनिश्रीजी इस कला में सफल हुए हैं । आगम-साहित्य पर वे वर्षों से कुछ-न-कुछ लिखते रहे हैं । परन्तु मेरी दृष्टि में चार छेद सूत्रों पर जो अभी लेखन-कार्य किया है, वह आगम-साहित्य की परम्परा में चिरस्थायी एवं गौरवपूर्ण कहा जा सकता है । 'कमल' मुनिजी के इस समयोपयोगी सुन्दर सम्पादन की मैं विशेष रूप से प्रशंसा करता हूँ।