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________________ आयारदसा १५५ उवागच्छित्ता चेल्लणादेवि एवं वयासी "एवं खलु देवाणुप्पिए ! समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थयरे जावपुव्वाणुपुचि चरेमाणे जाव-संजमेण तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । तं महप्फलं देवाणुप्पिए ! तहारूवाणं अरहंताणं जाव-तं गच्छामो देवाणुप्पिए ! समणं भगवं महावीरं वंदामो, नमसामो, सक्कारेमो, सम्माणेमो, कल्लाणं, मंगलं, देवयं चेइयं पज्जुवासामो। एतं णं इहभवे य परभवे य हियाए, सुहाए, खमाए निस्सेयसाए जाव–अणुगामियत्ताए भविस्सति ।" उस समय श्रेणिक राजा भंभसार यानशाला के अधिकारी से श्रेष्ठ धार्मिक रथ ले आने का संवाद सुनकर एवं अवधारणा कर हृदय में हर्षित-संतुष्ट हुआ यावत्......(उसने) स्नान घर में प्रवेश किया। यावत्.......कल्पवृक्ष के समान अलंकृत एवं विभूषित वह श्रेणिक नरेन्द्र... .यावत् ......स्नान घर से निकला । जहाँ चेलणा देवी (महारानी) थी-वहाँ आया । उसने चेलणा देवी को इस प्रकार कहा-- "हे देवानुप्रिये ! पंच याम धर्म के प्रवर्तक तीर्थंकर श्रमण भगवान महावीर ......यावत्......अनुक्रम से चलते हुए यावत्....संयम और तप से आत्मसाधना करते हुए (गुणशील चैत्य में) विराजित हैं।" हे देवानुप्रिये ! संयम और तप के मूर्तरूप अरहंतों के (नाम-गोत्र श्रवण करने का ही महाफल है).......यावत्.......इसलिए हे देवानुप्रिय ! चलें, श्रमण भगवान महावीर को वंदना नमस्कार करें उनका सत्कार सम्मान करें, वे कल्याण रूप हैं, देवाधिदेव हैं, ज्ञान के मूर्तरूप हैं उनकी पर्युपासना करें। उनकी यह पर्युपासना इह भव और परभव में हितकर, सुखकर, क्षेमकर, मोक्षप्रद...यावत्... भव भव में मार्ग-दर्शक रहेगी। सूत्र १६ - तए णं सा चेल्लणा देवी सेणियस्स रन्नो अंतिए एयमलैं सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठा जाव-पडिसुणेइ पडिसुणित्ता जेणेव मज्जण-घरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता व्हाया, कयबलिकम्मा,
SR No.002225
Book TitleChed Suttani Aayar Dasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherAagam Anyoug Prakashan
Publication Year1977
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size13 MB
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