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________________ आयारदसा . १२९ · जिनकल्पी और स्वस्थ स्थविरकल्पी श्रमणों की चर्या में केशलुंचन के सम्बन्ध में केवल उत्सर्ग विधान है, किन्तु अस्वस्थ होने पर केवल स्थविरकल्पी के लिए अपवाद का विधान है। मस्तक पर जब तक व्रण रहें या नेत्र आदि किसी अङ्गोपाङ्ग की शल्यचिकित्सा के बाद चिकित्सक ने केशलुंचन के लिए जब तक निषेध किया हो तब तक अपवाद विधान के अनुसार करना चाहिए। केशलुंचन के दो अपवाद विधान १ कैंची से केश काटना । २ उस्तरे से केश साफ करना । इन अपवाद विधानों की काल मर्यादा१ कैंची से पन्द्रह-पन्द्रह दिन के बाद केश काटते रहना चाहिए। २ उस्तरे से एक-एक मास के बाद केश साफ करते रहना चाहिए। अत्यन्त अस्वस्थ निर्ग्रन्थ के केशों को वैयावृत्य करने वाला निर्ग्रन्थ स्वयं कैची या उस्तरे से साफ करें। इसी प्रकार अत्यन्त अस्वस्थ निर्ग्रन्थी के केशों को वैयावृत्य करने वाली निम्रन्थी स्वयं कैंची या उस्तरे से दर करे । केशलुंचन की अवधि :- . १ स्थानाङ्ग (अ० ३ उ० २ स १५६) में कहे गए तीन प्रकार के स्थविरों में जो एक भी प्रकार का स्थविर न हो, उसे छह-छह मास के अन्तर से केश लोच कर ही लेना चाहिए। २ जो तीन प्रकार के स्थविरों में से किसी प्रकार का स्थविर हो वह एक-एक वर्ष के अन्तर से भी केशलुंचन करवा सकता है। केशलुंचन न करने से होने वाली विराधनाएँ . . १ केश स्वेद (पसीना) से गीले रहते हैं, मैल जमता रहता है अतः उनमें जुएँ पैदा हो जाती हैं। २ मैल और जुओं से होने वाली खाज खुजलाने से जुएँ मर जाती हैं। ३ खाज खुजलाने से मस्तक पर नख से क्षत हो जाते हैं। . ४ कैंची या उस्तरे से ही सदा केश साफ करते रहने पर आज्ञा भंग आदि दोष लगेंगे तथा संयम विराधना और आत्म-विराधना भी होगी। - ५ नाई से सदा केश साफ करवाने पर पूर्वकर्म या पश्चात्कर्म दोष ' लगता है, तथा जिनशासन की अवहेलना भी होती है। ___ यहाँ केवल उत्सर्ग-मार्ग का सूत्र दिया है, क्योंकि निशीथ (उद्देशक १० सूत्र ४८) में भी उत्सर्ग-मार्ग का ही प्रायश्चित्त विधान है।
SR No.002225
Book TitleChed Suttani Aayar Dasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherAagam Anyoug Prakashan
Publication Year1977
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size13 MB
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