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________________ आयारदसा ११७ ते य से नो वियरेज्जा; एवं से नो कप्पइ गाहावइकुलं भत्ताए वा, पाणाए वा, निक्खमित्तए वा, पविसित्तए वा। से किमाहु भंते ! आयरिया पच्चवायं जाणंति ।८/५६॥ सत्रहवीं गुरु अनुज्ञा समाचारी वर्षावास रहा हुआ भिक्षु गृहस्थों के घरों में भक्त-पान के लिए निष्क्रमणप्रवेश करना चाहे तो १ आचार्य २ उपाध्याय ३ स्थविर ४ प्रवर्तक ५ गणि ६ गणधर और ७ गणावच्छेदक. इनमें जिसको अगुआ मानकर वह विचर रहा हो, उन्हें पूछे बिना आना-जाना कल्पता नहीं है। किन्तु १ आचार्य, २ उपाध्याय, ३ स्थविर, ४ प्रवर्तक, ५ गणि, ६ गणधर और ७ गणावच्छेदक इनमें से जिसको अगुआ मानकर वह विचर रहा हो उन्हें पूछकर ही आना-जाना कल्पता है । (आज्ञा लेने के लिए भिक्षु इस प्रकार कहे) हे भगवन् ! आपकी आज्ञा मिलने पर गृहस्थों के घरों में भक्तपान के लिए मैं निष्क्रमण-प्रवेश करना चाहता हूँ। यदि आचार्यादि आज्ञा दें तो गृहस्थों के घरों में भक्तपान के लिए निष्क्रमण-प्रवेश करना कल्पता है। यदि आचार्यादि आज्ञा न दें तो गृहस्थों के घरों में भक्तपान के लिए निष्क्रमण प्रवेश करना नहीं कल्पता है । प्रश्न-हे भगवन् ! ऐसा क्यों कहा? उत्तर-आचार्यादि आने वाली विघ्न-बाधाओं को जानते हैं । सूत्र ६० एवं विहारभूमि वा, वियार भूमि वा, अन्नं वा किंचि पओअणं । ८/६० ____ इस प्रकार स्वाध्याय भूमि और शौच भूमि या अन्य किसी प्रयोजन के लिए उक्त आचार्यादि की आज्ञा लेकर आना-जाना कल्पता है । सूत्र ६१ एवं गामाणुगामं दूइज्जित्तए ।८/६१॥
SR No.002225
Book TitleChed Suttani Aayar Dasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherAagam Anyoug Prakashan
Publication Year1977
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size13 MB
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