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आयारवसा .
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• प्र०-हे भगवन् ! अण्ड सूक्ष्म किसे कहते हैं ? उ० – अण्ड सूक्ष्म पांच प्रकार के कहे गये हैं, यथा१ उदंशाण्ड=मधु मक्खी मत्कुण आदि के अण्डे । २ उत्कलिकाण्ड=मकड़ी आदि के अण्डे । ३ पिपीलिकाण्ड=किड़ी, मकोड़ी आदि के अण्डे । ४ हलिकाण्ड =छिपकली आदि के अण्डे । ५ हल्लो हलिकाण्ड = शरटिका आदि के अण्डे ।
ये अण्ड सूक्ष्म छद्मस्थ निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों के बार-बार जानने योग्य, देखने योग्य, और प्रतिलेखन योग्य है ।
___ अण्ड सूक्ष्म वर्णन समाप्त ।
মুন্স ও
प्र०-से किं तं लेणसुहुने ? उ०-लेणसुहमे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा- .
१ उत्तिगलेणे, २ भिंगुलेणे, ३ उज्जुए, ४ तालमूलए, ५ संबुक्काव? नामं पंचमे। .. जे छउमत्थेण निग्गंथेण वा, निग्नंथीए वा अभिक्खणं अभिक्खणं जाणियब्वे पासियव्वे पडिलेहियव्वे भवइ । से तं लेणसुहुमे । (७) ८/५७
प्र०—हे भगवन् ! लयन-सूक्ष्म किसे कहते हैं ? उ० --लयन-सूक्ष्म पाँच प्रकार के कहे गये हैं, यथा
१ उत्तिंगलयन= भूमि में गोलाकार गड्ढे बनाकर रहने वाले, सूंड वाले जीव। ... २ भृगुलयन =कीचड़ वाली भूमि पर जमने वाली पपड़ी के नीचे रहने वाले जीव ।
३ ऋजुक लयन = बिलों में रहने वाले जीव ।
४ तालमूलक लयन=ताल वृक्ष के मूल के समान ऊपर सकड़े; अन्दर से चौड़े बिलों में रहने वाले जीव । . . ५ शम्बूकावर्त लयन =शंख के समान घरों में रहने वाले जीव ।
ये लयन-सूक्ष्म जीव छद्मस्थ निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों के बार-बार जानने योग्य • देखने योग्य और प्रतिलेखन योग्य हैं।
. . लयन-सूक्ष्म वर्णन समाप्त ।