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________________ १०४ छेदसुत्ताणि भिक्षु को उपाश्रय से आगे सात घरों में भिक्षा के लिए जाना नहीं कल्पता है और कुछ आचार्यों का कहना है कि संखड़ी सन्निवृत्तचारी भिक्षु को उपाश्रय से आगे एक और घर के बाद सात घरों में भिक्षा के लिए जाना नहीं कल्पता है। विशेषार्थ-जिस घर में अनेक व्यक्तियों के लिए जीमन बने वह "संखड़िगृह" कहा जाता है। प्रथम मत के अनुसार यदि संखडिगृह उपाश्रय से लेकर सात घरों में हो तो संखड़ि भोजन त्यागी भिक्षु को उन घरों में भिक्षा के लिए नहीं जाना चाहिए। द्वितीय मत के अनुसार उपाश्रय को छोड़कर आगे के सात घरों मे और तृतीय मत के अनुसार उपाश्रय से आगे के दो घरों को छोड़कर आगे के सात घरों में भिक्षा के लिए नहीं जाना चाहिए। टीकाकार ने इस निषेध का कारण यह कहा है-उपाश्रय के समीपवर्ती गृहस्थ उपाश्रय में स्थित साधुओं से अनुराग वाले हो जाते हैं, अतः वे अनुरागवश आधाकर्म निष्पन्न आहार भी उन्हें दे सकते हैं। इसलिए उपाश्रय के समीप सात, आठ या नौ घरों में संखड़ी भोजन-त्यागी साधू-साध्वी को गोचरी के लिए जाना नहीं कल्पता है; भले ही जीमन उन घरों में से किसी भी घर में क्यों न हो! वृष्टौ सत्यां जिनकल्पिकानामाहार-विधिरूपा द्वादशी समाचारी सूत्र ३७ वासावासं पज्जोसवियस्स''नो कप्पइ पाणिपडिग्गहियस्स भिक्खुस्स कणगफुसियमित्तमवि वुट्टिकायंसि निवयमाणंसि जाव गाहावइकुलं भत्ताए वा, पाणाए वा, निक्खमित्तए वा, पविसित्तए वा ।८/३७ बारहवीं जिनकल्पी आहार-रूपा समाचारी वर्षावास रहने वाले पाणिपात्रग्राही भिक्षु को सूक्ष्म जल कणों की वर्षा फुहार धुअर आदि हो तो भी गृहस्थों के घरों से भक्तपान के लिये निष्क्रमणप्रवेश करना नहीं कल्पता है ।
SR No.002225
Book TitleChed Suttani Aayar Dasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherAagam Anyoug Prakashan
Publication Year1977
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size13 MB
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