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छेवा
— ऊपर लिखा हुआ अर्थ इस मूल पाठ के अनुसार है । वर्षाकाल में निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थियाँ जिस क्षेत्र में रहने का निश्चय करें उसके मध्यवर्ती स्थान से आठों दिशाओं में अढ़ाई - अढ़ाई कोश जाने तथा आने पर पाँच कोश का क्षेत्रावग्रह होता है ।
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हाथ की गीली रेखाएँ सूखने में जितना समय लगता है उतने समय को “यथालंदकाल” कहा जाता है ।
इस सूत्र का अभिप्राय यह है कि अवग्रह क्षेत्र से बाहर निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को क्षणभर भी नहीं ठहरना चाहिए ।
भिक्षाचर्या - रूपा तृतीया समाचारी
सूत्र ६
वासावासं पज्जोसवियाणं कप्पइ निग्गंथाणं वा, निग्गंथीण वा सव्वओ समंता सकोसं जोयणं भिक्खायरियाए गंतुं पडिनियत्तए । ८ / १ |
तीसरी भिक्षाचर्या समाचारी
वर्षावास रहने वाले निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों को एक कोश सहित एक योजन क्षेत्र में चारों और भिक्षाचर्या के लिये जाना एवं लौटकर आना कल्पता है ।
सूत्र १०
जत्थ नई निच्चोयगा निच्चसंदणा नो से कप्पइ सव्वओ समंता सक्को सं जोयणं भिक्खायरियाए गंतुं पडिणियत्तए । ८/१०/
जहाँ नदी जल से भरी हुई सदा बहती रहती हो वहाँ निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों at भिक्षाचर्या के लिए एक कोश सहित एक योजन क्षेत्र में चारों ओर जानाआना नहीं कल्पता है ।
सूत्र ११
एरावई कुणालाए जत्थ चक्किया सिया एगं पायं जले किच्चा, एगं पायं थले किच्चा एवं णं कप्पइ सव्वओ समंता सक्कोसं जोयणं भिक्खायरियाए तुं पडिनियत्तए ।
एवं च नो चक्किया ।
एवं से नो कप्पइ सव्वओ समंता सक्कोसं जोयणं भिक्खायरियाए गंतुं डिनियत | ८ / ११ |