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________________ आयारवसा ८७ • श्रावण और भाद्रपद मास 'प्रावृट्', आश्विन और कार्तिक मास 'वर्षारात्र' कहे जाते हैं । चूर्णी और विशेष चूर्णी में भी यही कहा गया है। __स्थानाङ्ग अ० ५, उ० २, सूत्र ४१३ की टीका में वर्षाकाल के चार मास को 'प्रावृट्" कहा है तथा 'प्रावृट्' के दो माग किए गए हैं। प्रथम प्रावृट् पचास दिन का, द्वितीय प्रावट सत्तर दिन का। हे आयुष्मन् ! उस समय तक गृहस्थों के घर बांस आदि की चटाइयों से बाँध दिये जाते हैं, खड़िया मिट्टी आदि से पोत दिये जाते हैं, घास आदि से आच्छादित कर दिए जाते हैं, गोबर आदि से लीप दिए जाते हैं, काँटों की बाड़ और कपाट आदि से सुरक्षित कर दिए जाते हैं, विषम भूमि को तोड़कर सम भूमि कर दी जाती है, कोमल चिकने पाषाण खण्डों से घिस दिये जाते हैं, धूप से सुगंधित कर दिए जाते हैं, जल निकलने की नालियाँ साफ कर दी जाती हैं, उक्त सभी कार्य गृहस्थ अपने लिए (तब तक) कर लेते हैं । ___ इस अर्थ (कारण) से ऐसा कहा गया है कि श्रमण भगवान महावीर ने वर्षाकाल का एक मास और बीस रातें व्यतीत होने पर वर्षावास का निश्चय किया। सूत्र २ ____ जहा णं समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराए मासे विइक्कते वासावास पज्जोसवेइ। - तहा गं गणहरा वि वासाणं सवीसइराए मासे विइक्कते वासावासं पज्जोसविति ।८/२॥ जिस प्रकार श्रमण भगवान महावीर ने वर्षाकाल का एक मास और बीस 'रातें व्यतीत होने पर वर्षावास का निश्चय किया, ___ उसी प्रकार उनके गणधरों ने भी वर्षाकाल का एक मास और बीस रातें व्यतीत होने पर वर्षावास का निश्चय किया। सूत्र ३ जहा गं गणहरा वासाणं सवीसइराए मासे विइक्कते वासावासं पज्जोसविति। तहा णं गणहरसीसा वि वासाणं सवीसइराए मासे विक्कंते वासावासं पज्जोसविति । ८/३
SR No.002225
Book TitleChed Suttani Aayar Dasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherAagam Anyoug Prakashan
Publication Year1977
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size13 MB
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