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________________ ८४ १ उम्मायं वा लभेज्जा, २ दीहकालियं वा रोगायंक पाउणिज्जा, ३ केवलि - पण्णत्ताओ वा धम्माओ भंसिज्जा । एक रात्रि की भिक्षु प्रतिमा का सम्यक् प्रकार से पालन न करने वाले अनगार के लिए ये तीन स्थान अहितकर, अशुभ, असामर्थ्यकर अकल्याणकर एवं दुःखद भविष्य वाले होते हैं, यथा १ उन्माद की प्राप्ति, २ चिरकाल तक भोगे जाने वाले रोग एवं आतंक की प्राप्ति, ३ केवली प्रज्ञप्त धर्म से भ्रष्ट होना । छेदाण सूत्र ३८ एग - इयं भिक्खु-पडिमं सम्मं अणुपालैमाणस्स अणगारस्स इमे तओ ठाणा हियाए, सुहाए, खमाए, निस्सेसाए, अणुगामियत्ता भवति, तं जहा - १ ओहिनाणे वा से समुपज्जेज्जा, २ मण - पज्जवनाणे वा से समुपज्जेज्जा, ३ केवल - नाणे वा से असमुप्पन्नपुव्वे समुपज्जेज्जा । एवं खलु एगराइयं भिक्खु-पडिमं अहासुर्य, अहाकप्पं, अहामग्गं, अहातच्चं, सम्मं कारण फासित्ता, पालित्ता, सोहित्ता, तीरिता, किट्टित्ता, आराहित्ता, आणाए अणुपालित्ता या वि भवति । (१२) एक रात्रिक भिक्षु प्रतिमा का सम्यक् प्रकार से पालन करने वाले अनगार के लिए ये तीन स्थान हितकर, शुभ, सामर्थ्यकर, कल्याणकर एवं सुखद भविष्य वाले होते हैं, यथा १ अवधिज्ञान की उत्पत्ति, २ मनः पर्यवज्ञान की उत्पत्ति, ३ अनुत्पन्न केवलज्ञान की उत्पत्ति । . इस प्रकार यह एक रात्रिकी भिक्षु प्रतिमा यथासूत्र, यथाकल्प, यथामार्ग और पालन कर ( अतिचारों का ) अनुसार बिना किसी अन्तर यथातथ्य रूप से सम्यक् प्रकार काय से स्पर्श कर, शोधन कर, कीर्तन और आराधन कर जिनाज्ञा के या व्यवधान के) पालन की जाती है ।
SR No.002225
Book TitleChed Suttani Aayar Dasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherAagam Anyoug Prakashan
Publication Year1977
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size13 MB
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