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वि. सं. १९८१मां पाटणमां सिद्धराजनी सभामां कुमुदचंद्र साथै वादिदेव रिए वाद कर्यो. आ वखते हेमचंद्रसूरि हाजर हता. आथी लागे छे के सिद्धराजनी समानो परिचय अने सिद्धराजने हेमचंद्रसूरिनो परिचय तो ते पहेलांथी ज होवो जोईए.
आम छतां सिद्धगज साथे घनिष्ट परिचय तो त्यार पछीज थयो जणाय छे. वि. सं. १९९३मां सिद्धराजे यशोवर्मानो पराजय कर्यो स्यारवाद एक वर्षमां व्याकरणनी रचना करी ते पहेलां सिद्धराज धर्मसंबंधी, वेदो संबंधी, पांडवो संबंधी विगेरे अनेक खुलासाओ मेळवी हेमचंद्रसूरिनी विद्वता अने प्रतिमानो पूजक बन्यो हतो अने तेथीज ज्यारे भोजना ग्रंथो जोइ हृदयमां अजपो जाग्यो त्यारे हेमचंद्रसूरिने नवीन व्याकरण बनाववानी बिज्ञप्ति करी..
कलिकाल सर्वज्ञ हेमचंद्रसूरिनी सर्व कृतिओमां सिद्धहेमशब्दा नुशासन सर्व प्रथम कृति अने सर्वोच्चकृति छे, जे कृतिए जैनजैनेतर समग्र विद्वानोने नत मस्तक बनाव्या छे अने तेनी पहेलाना सर्व व्याकरण ग्रंथोने भूलाव्या छे.
१२५००० श्लोक प्रमाणनो व्याकरण ग्रंथ तेमणे एक वर्षमां रच्यो. ते सवा लाख श्लोक आ प्रमाणे थाय छे.
|१|८४००० श्लोक प्रमाण सिद्धहेमबृहन्न्यास. * | २|१८००० श्लोक प्रमाण सिद्धहेमबृहद्वति. | ३|६००० श्लोक प्रमाण सिद्धहेमलघुवृत्ति. | ४|४५०० श्लोक प्रमाण सिद्ध हेम रहस्यवृत्ति.
x आ बृहन्म्यास ८४००० श्लोक प्रमाण बनाव्यो के तेमांथी हाल २०००० थी २५००० लोक प्रमाण उपलब्ध थाय छे.
* आ रहस्यवृत्ति पंडित प्रभुदास बेचरदासद्वारा हमजांज संपादन करवामां आवी छे तेमां सूत्रोनी नीचे खास खास रहस्यने जणावनार अति संक्षिप्तवृत्ति छे.