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________________ सुलमधातुरूपकोशः .२७ Part. Pot. Pass. वन धानु० विशे० Part. |Act. Pass./ विध्ययं धातु. कतरि कर्मणि विशे० |Past Pass.| Infin.ot | Gerund er ___Part. | Purpose | Absolutive भूतकाल०धातु० हेत्वर्थक धातु पूर्वकाल. धातु. अव्यय अव्यय वि संपचत संपच्य- संपर्चितव्य. संपर्च- संपृक्त | संपर्चितुम् | संपृच्य माननीय, संपर्थ्य | पिपुरत् पूर्यमाण परितव्य, परीतव्य, पूर्ण or पूर्त परितुम् or परीतुम् (प्रपूर्य) पूनी, परणीय, पार्य | प्रीणत्, प्रीयमाण प्रेतव्य, प्रयणीय, प्रेतुम् प्रेय पुणत् पुष्यमाण लोषितव्यं, लोषणीय, ग्लोपितुम् प्रीला (संप्रीय) प्लुपित्वा, लोषित्वा प्सातुम् । प्सावा शेष्य सात् प्सायमान सातव्य, सानीय, प्सेय बधत् वध्यमान बन्दव्य, बन्धनीय, बन्य ब्रुवत्, उच्यमान| वकव्य, वचनीय, वाच्य भजत् भज्यमान भक्तव्य, भजनीय, भहस्य मात्. भायमान भातव्य, भानीय, A मन . वद्धा, (निवध्य) वक्तम । उक्त्वा , (प्रोच्य) भक्तुम् भक्त्वा भड्क्त्वा (विभज्य) भातुम् भाखा, (विभाय) भेत्तम् । (संभिद्य) भीत्वा, (संभीय) भोक्तम् । मुक्त्वा , (उपभुज्य) भर्तुम् । भृत्वा, (संभृत्य) । मन्धितुम् | मन्यित्वा भित्त्वा, भेतुम् भिन्दत् ,भियमान भेतव्य, मेदनीय, मिन्दानं भय . विभ्यत् भीयमान भेतव्य; भयनीय, राजा, मुग्यमान भोजव्य, भोजनीय, मान,मोम्पmjayable वित्रत, श्रियमाण भर्तव्य, भरणीय, | मृत। वित्राण प्रत्य मात् मन्यमान मन्धितल्य, मन्यनीय, मन्धित राधान
SR No.002219
Book TitleSulabh Dhatu Rup Kosh Part 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnaji B Virkar, Kulchandravijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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