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श्रीनवतश्वविस्तरार्थः
* अने अपर्याप्त एकेन्द्रिय तथा विकलेन्द्रिय ए सर्वने आहारशरीर अने इन्द्रिय ए ३ पर्याप्तिओ होय छे तेमज लब्धिअपर्याप्त गर्भज (संज्ञि) तिर्यच पंचेन्द्रिय अने गर्भज ( संज्ञि ) मनुष्यने पण एज ३ पर्याप्तिओ होय छे तथा लब्धिपर्याप्तएकेन्द्रियोने ४ पर्याप्ति, लब्धिपर्याप्त विकलेंद्रिय (दीन्द्रि-त्रीन्द्रिय- अने चतुरिन्द्रिय) ने तथा लब्धिपर्याप्ता असंज्ञि (समूर्च्छिम तिर्यच ) पंचेन्द्रियने ५ पर्याप्तिओ प्रथमनी होय छे, ( अहिं समृच्र्च्छिम मनुष्यो लब्धिपर्याप्ति होइ शके नहिं तेथी तेओ ग्रहण कर्तुं नथी, ) अने लब्धिपर्याप्ति मनुष्य- ल० प० ग० तिर्यच सर्व देव अने सर्व नारक जीवोने छ ए पर्याप्तिओ होय छे. कारणके लब्धिपर्याप्त तिच अने मनुष्य अपूर्ण पर्याप्तिए मरण पामे नहि, तेमज देव अने नारक लब्धिअपर्याप्त होता नयी पण लब्धि पर्याप्ता ज होय छे माटे तेओ पण अपूर्ण पर्याप्तिए मरण पा मता नथी.
पर्याप्तिना संबंधमां लब्धि अने करण भेदनी विवक्षा चालु प्रकरणमां तेमज बीना पण अनेक ग्रंथोमां लब्धि अपर्याप्त
* लब्धि अपर्याप्त सम्मूच्छिम मनुष्योने उच्छवासपर्याप्ति संभवे नहि कारणके सर्वे लब्धि अपर्याप्ताने ३ पर्याप्तिओज समाप्त थाय एवो कर्मग्रंथनो नियम छे तो पण जीवविचारावचूरीमां अने श्री द्रव्यलोकप्रकाशमां समु० मनुष्योने ७-८ प्राण, अने बृहत्संग्रहणि वृत्तिमां ९ प्राण कह्या होवाथी उच्छवास अने भाषा प्राण कहेलो गणाय, अहीं उच्छवास प्राण को परन्तु अपर्याप्तनामकर्म अने उच्छवासनामकर्म ए बेनो समकाळे उदय कोइपण शास्त्रमां अंगीकृत कर्यो नथी तो लब्धि अपर्याप्त सम्मू० मनुष्यने उच्छवास प्राण अने वचनप्राण उच्छवास अने वचनपर्याप्ति पूर्ण कर्या विना केषी रीते होय ? ते बहु विचारवा योग्य छे. वळी ९ प्राणो कहेवाथी तो ते पर्याप्तो थाय छे.