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________________ 069ccocecem (वे बोल.) 00000000000 आ आपणुं परमपवित्र अमितगुणास्पद अमेयमहिमरत्नरत्नाकर देवगुरु अने धर्मनी त्रिपुटीशुद्ध कप छेद--तापादि परीक्षामा सो टचना सानानी जेम उत्तीर्ण थयेल पूर्वापर अविरोधादिगुणविभूषित शाश्वतप्रभावशाली त्रिकालाबाधित सनातन श्री जैनदर्शन सूक्ष्मतवो तेना यथार्थस्वरूप--लक्षणविभाग--गुणधर्मपर्याय आदि प्रतिपादन करवामां सकलदर्शनोमां अग्रपद भोगवे छ एमां किंचिन्मात्र पण अतिशयोक्ति नथी. ___आत्मविचारणा कर्मविचारणा पुद्गलादिद्रव्यो विगेरेनी वि. चारणामो जैनदर्शनना प्रन्यो जे विस्तारयी बताये छे तेनी भांशिक विचारणा पण अन्य ग्रन्थोमा दृष्टिगोचर थती नथी. अमे घणाज मगरूर थइये छीये के पाश्चिमात्य प्रजा के जे घरखतनो, अनर्गल द्रध्यनो अने अगाध परिश्रमनो लांबो भोगापी घणाप्रयोगोनी अजमायशयी "वायरलेसटेलीग्राफ फोनोग्राफ हाइड्रोजन आकसीजन वायु: माथी पाणीसव"विगेरे विशानफलाओ जे पोते नवीन शोध कर्यानो दापो करें छे ते सर्व कलाओ करामलकवल्लोकालोकवर्तिभावोनी त्रिकालसत्ता तथा परिवर्तनाने देखनार सर्वशभगवन्तो-तीर्थकरदे वो जेमणे आरंभ परिग्रहादिनी सर्वथा पच्चक्खाण ( त्याग ) हो. वाने लइने कोइपण जातनो प्रयोग अजमाव्या वगर"शकेन्द्र परमास्माना जन्ममहोत्सवादि समये हरिणेगमेषिद्वारा सुघोषाघंटायगडावेजें तेमज "भाषा वर्गणाना पुद्गलपरिणामरूप शब्दोघीजा पुद्गलोनी जेम यत्रादिद्वारा पकडाय छेवायुयोनिज अकाय"त्यादि जे जे तपचो केवलज्ञानथी लोकाकोकना भावो देखी पहेलेथोज फरमाव्या छे ते समजनाराओने सहेजे समजी शकाय तेम छे!!! बळी नैयायिक वैशेषि
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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