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॥ श्री नवतत्त्वप्रकरणम् ॥
(पयइठिहरसपएसा, तं चउहा मोयगस्स दिटुंता।। मूलपगइट्ट उत्तर-पगई अहवनसयभेयं ॥५४ ) ॥ ७२ ।। (इहनाणदंसणावरण-वेय मोहाउनामगोयाणि । विग्धं च पण नव दु अ-वीस घउ तिसय दुपणविहं५५)७३ (पड? परिहार रसिमज४-हड चित्तदकुलालभंडगा ।
रीणं ८। जह एएसि भाषा, कम्माण वि जाण तह भावा ५६)७४ (सरउग्गयससिनिम्मल-यरस्स जीवस्स छायणं जमिह । नाणावरणं कम्मं, पडोवम होइ एवं तु ॥ ५७ ॥) ७५ ॥ (दसणसीले जीवे, देसणघायं करेइ ज कम्मं । तं पडिहारसमाणं, दसणावरणं भवे जीव ।। ५८ ) ७३ ॥ (महुलितनिसिअकरवाल-धार जीहाई जारिसं लिहणं । तारिसयं वेयणिों , मुहदुहउप्पायसमुयाणं ॥९|) ॥७७|| (जह मजपाणमूढो,लोए पुरिसो परवसो होइ ।। तह मोहेण विमूढो, जीवो अ परवसो होइ ॥६० ) ७८ ॥ (दुक्खं न देइ आऊ, नवि अमुहं देह चऊसु वि गइसु । दुक्खसुहाणाहार, धरेइ देहटिअं जीयं ॥६॥ ) ॥ ७९ ॥ ( जह चित्तयरो निउणो, अणेगरूवाई कुणइ रूबाई । सोहणमसोहणाई, लु चु)क्खमल(चु)क्खेहिवण्णेहि६२)८० (तह नाम पि हुकम्नं, अगरूवाइ कुणइ जीयस्स । सोहणमसोहणाइ, इटाणिहाई लोभस्स ॥६३॥ ) ॥८॥ (जह कुंभारो भंडाइ, कुणइ पुज्जेअराइ लोअस्स । इभ गोतं कुणइ जोअं, लोए पुज्जेअरावत्थं ॥३४ )॥८२ ।।