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(३५४) ॥ श्री नवतत्त्वप्रकरणम् ॥ एगिदिवसहुमिअरा, संनिअरपणिंदिया य सबितिचउ
अपज्जत्ता पजत्ता, कमेण चउदस मिट्ठाणा ॥३॥४॥ (नाणं च दंसणं चेव, चरितं च तवो तहा। वीरियं उवओगो य, एथं जीवस्स लक्खणं ॥२॥ ) ॥५॥ ( आहारसरीरइंदिय, पजत्ती आणपाणभासमणे। . चउ पंच पंच छप्पिय, इगविगलासन्निसन्नीणं ॥३॥ ) ६ ॥ ( पणिदियत्तिबलूसा-साउदसपाण चऊ छ सग अट्ट । इगदुति चउरिंदीणं, असन्निसन्नीण नव दस य ॥४॥ ७ ॥ धम्माऽधम्मागासा, तियतियभेया तहेव अध्धा य। खंग देसपएसा, परमाणु अजीव चउदसहा ॥४॥८|| धमाधम्मा पुग्गल, नह कालो पंच हुंति अजीवा । चलणसहावो धम्मो, थिरसंठाणो अहम्मो य ॥५॥९ अवगाहो आगासं, पुग्गलजीवाण पुग्गला चउहा । खंधा देसपएसा, परमाण चेव नायव्वा ॥६॥ १० ॥ ( सबंधयार उज्जोय, पभाछायातवेइय । वन्नगंधरसाफासा, पुग्गलाणं तु लकखण ॥ ५॥) ११ ॥ समयावली मुहुत्ता, दीहा पक्खा य मासवरिसा य । भणिओपलिया सागर, उस्सप्पिणी सप्पिणीकालो७।१२ ( एगाकोडी सत्तसट्ठिलक्खा, सत्तहत्तरी सहस्सा य । दोयसया सोलहिया, आवलिआ इगमुत्तमि ॥६॥) ॥१३॥ (तिनिसहस्सा सत्तय सयाणि, तिहत्तरं च उस्सासा।। एग समुहुत्तो भणिओ, सध्वेहि अणंतनाणीहिं ॥७) ॥१४॥