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________________ (३३६) ॥श्री नवतत्त्वविस्तरार्थः ॥ नियम नथी, परन्तु जे कोइ जीव तीर्थस्थपाया बाद मोले जाय ते तीर्थसिध्ध कही शकाय. तथा श्री आदीश्वर भगवाननी माता श्रीमरुदेवा वगेरे जेओ तीर्थ स्थपाया हेलां मोक्षे गयेल होय ते अतीर्थसिध्ध कहेवाय. १ श्रीऋषभदेव भगवानने केवळ ज्ञान थयु ते वखते सर्व इन्द्रादि देवो केवळ ज्ञाननो महोत्सव करवा तथा श्रीभगवंतनी देशना सांभळवाने आव्या ते वखते देवो समवसरण वगे. रेनो घणो आडंबर करी उपदेश श्रवण करता हतो. ते दरम्यानमां भरतचक्रवर्तीने खबर मळतां तुरत ज पुत्रना विरहथी रात्री दिवस रुदन करी अन्ध थयेला मरुदेवा माताने शान्ति उपजाववा का' के हे मातुश्री? आप तो रात्रिदिवस शोक करोछो के मारो पुत्र ऋषभ क्या हशे ? शुं खातो हशे ! शुं : पीतो हशे ! केवु कष्ट वेठतो हशे, परन्तु हवे चालो के आपना पुत्रनी केवी ऋद्धि छे ते दर्शावं. आ खबर मळतां तुरत ज मरुदेवा माता हर्षवान् थइ भरते शणगारेला हाथी पर बेसी ऋषभपुत्रने मळवा परिवार सहित जायछे ने म. वसरणमां तो हजी देशना देवायछे, ते वखते ' इन्द्रो वासळी आदिथी प्रभुनो स्वर पूरेछे, देवो दुन्दुभि वगाडेछे इत्यादि म. हामहोत्सव सांभळी मरुदेवा माता मार्गमां ज विचार करे छे के अहो ? हु पुत्र पर आटलो बधो प्रेम राखु छु छतां पुत्रतो आटला बधा सुखमां मग्न थइ मारी खबर पण नथी लेतो ! अने संदेशो पण नथी कहावतो ! खरेखर आ मारो मोह बहु दुःखदायी छे, संसारमा कोइ कोइर्नु संगु नथी इत्यादि भाषना भावतां मार्गमांज श्रीमरुदेवा माताने केवळज्ञान उत्पन्न थ यु ने आयुष्य पण अन्तर्मु० मात्र वाको रह्य हतुं तेलुं अलए आयुष्य पूर्ण करी मार्गमां हाथी उपर बेठां बेठांज मोशे गयां अहिं संघनी (-तीर्थनो ) स्थापना तो हजी देशना समा.. प्त थया बाद करवानी छे, परन्तु ते पहेलांज मरुदेवा माता मोक्षमां गयां माटे अतीर्थसिद्ध छे.
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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