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॥बन्धतवेऽष्टकर्मस्वरूपम् ॥ (३७३) ____ तथा प्रदेश एटले दल-परमाणुओना संचय-समुदाय. अ. यात् कर्म ते कार्मणवर्गणा नामना पुद्गल परमाणुओना समुदायरुप छ, माटे कर्म अवश्य परमाणुओना समुदाय बनेलं छे, ते परमाणुभो सर्व कर्मना सरखी संख्याए होता नयी पण हीनाधिक होय छे.
ए प्रमाणे कर्मबंध चार प्रकारनो छे तेमां पण कर्म बंधना मुख्य ४ हेतु छे. १ अज्ञान (-मिथ्यात्व )-२ अव्रत (-त्याज्यनो अत्याग )-३ कषाय-ने ४ योग ए चार कारणमांयी पण प्रकृतिबंध अने प्रदेशबंधनुं कारण योग छे, अने स्थितिबंध तथा अनु. भागबंधनु कारण कपाय ( मिथ्यात्वने अव्रत ते कषायमां अंतर्गत जागवा ) छे ए प्रमाणे बंधतत्वना ४ भेद कह्या.
१ शास्त्रोमां कर्मना अनुभागनो अर्थ घणा खरा ग्रन्थोमां अनुभव करेलो छ, केटलाएक ग्रन्थोमां शुभाशुभफळ, केटलाएक ग्रन्थोमा तीब्रमन्दता, अने कोइक ठेकाणे स्वभाव एवो पण अर्थ करेलो छ, अपेक्षापूर्वक विचारतां सर्वे अर्थ बन्ध बेसता छे अने ते अपेक्षाविचारनुं वर्णन अत्रे ग्रन्थ वृद्धिकारक थवाना भयथी नहिं दर्शावतां मने जे तात्पर्य समजायं छै ते लखु छु ते संक्षेपमां आ प्रमाणे___ उदय काळे तीव्र अथवा मैद एवो शुभ (आल्हादकारी') वा अशुभ ( अनाल्हादकारी ] अनुभव आपवामां जे कारणभूत होय ते अनुभाग वा रस कहेवाय, ____अर्थात् अनुभागबन्ध ३ प्रकारना नियममां कारणरूप छे ते आ प्रमाणे-१ उदयनुं नियमितपणु करवु, २ जीवने अनुकळपणु वा प्रतिक्ळ पणं उपजावQ, ने ३ जु अमुक प्रमाणमा उदय आवद्यु, ए त्रण कार्यमा अनुभागबन्ध कारणरूपे छे.
१ चालु ग्रन्थमां कया कर्मना केटला परमाणु छे ते ग्रन्थकारे वर्शावेला नहिं होवाथो संक्षेपमा अत्रे दर्शावाय छे, त्यां