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________________ अवतरण-पूर्वे ३४ मी गाथामां बन्धतत्वना जे ४ भेद कया हता ते चार भेदनो अर्थ आ गाथामां कहे छ, ॥ मूळ गाथा ३७ मी.॥ पयइसहावो वुत्तो, हिई कालावहारणं । अणुभागो रसो णेश्रो. पएसो दलसंचओ ॥३७॥ ॥संस्कृतानुवादः॥ प्रकृतिः स्वभाव उक्तः, स्थितिः कालावधारणं । अनुभागो रसो ज्ञेयः, प्रदेशो दलसंचयः ॥३७॥ ॥शब्दार्थः ॥ पयइ-प्रकृति | अणुभागो-अनुभान सहाव-स्वभाव • रसो-रस वुत्तो-कह्यो छे णेओ-जाणवो दिई-स्थिति पएसो-प्रदेश काल-काळनो दल-(कर्मना) अणुओनो अवहारण-अवधारण (-नियम) | संचओ-संचय (--समूह). . 'गाथार्थ:-प्रकृति एटले कर्मनो स्वभाव, स्थिति एटले कर्मना काळनो नियम, अनुभाग एटले कर्मनो रस, अने प्रदेश एटले कर्मना दलिकनो ( अणुओनो ) समूह कह्यो छे, ए चार बन्ध. (तस्त्र ) ना भेद छ, अथवा ए चार प्रकारे कर्मबन्ध होय के, . विस्तरार्थः-प्रकृति एटले जे कर्म आत्मानी साथे बन्धायु छे, ते कर्मनो स्वभाव केवो छ ? अर्थात् ते कर्म आत्माने | फळ
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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