________________
|| श्री नवतत्व विस्तरार्थः ॥
॥ शुक्लध्यानना ४ भेद ॥
१ पृथक्त्ववितर्क सविचार - २ एकत्ववितर्क अविचार ३ सूक्ष्मक्रिया अप्रतिपाति - ४ व्युपरतक्रिया अनिवृत्ति,
(२६८)
ए ४ भेद छे, तेमां पृथकत्व एटले भिन्नभिन्न, वितर्क एटले श्रुतज्ञान, अने विचार एटले अर्थ-व्यञ्जन - ने योग ए त्रणनुं संक्रमण अर्थात् एक ध्येय (- अर्थ ) थी अन्य ध्येयपर जनुं ते अर्थ संक्रान्ति, एक व्यञ्जन ( विचाराती अक्षर श्रेणिपर) थी बीजा व्यंजनमां जयं ते व्यंजन संक्रान्ति अने एक योग परावर्ती अन्ययोगमां जब ते योगसंक्रान्ति कहेवाय, ए प्रमाणे आ शुक्लध्यानना प्रथम भेदमां श्रुतज्ञानने अनुसारे त्रणे जातनां भिन्नभिन्न संक्रमण होय छे, परन्तु एकज पदार्थ उपरनुं स्थिर ध्यान नथी पण द्रव्यथी गुणमां गुणथी पर्यायां पर्यायथी द्रव्यमां इत्यादि परावृत्ति वाळु ध्यान ते माटे एनुं नाम पृथक्त्ववितर्क सविचार छे, तथा जे द्रव्य वा पर्यायनुं ध्यान छे तेज द्रव्य वा पर्यायमां स्थित रहे, अने ध्येयनी - व्यंजननी के योगनी संक्रान्ति होय नहिं (--मनयोगे वा काययोगे वा वचनयोगे कोइपण एकज योगमां स्थितपणे ध्यान होय ) ने ते श्रुतज्ञानने अनुसारे ( वा चतुर्दशपूर्वघर श्रुतज्ञानीने ) ए ध्यान होय छे माटे ए बीजा भेदनं नाम एकत्ववितर्कअविचार है,
ि
तथा जे वखते सूक्ष्म योगप्रवृत्ति ( योग : निरोध क्रियाकाळे ) होय छे ते वखते जे आत्मरमणतारूप ध्यान वर्ते छे ने ते ( सूक्ष्म क्रिया योगनिरोध थतां पुनः विनाश पामनार होवाथी प्रतिपाति के मारे ए त्रीजा ध्याननुं नाम सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति छे,
तथा जे वखते क्रिया ( व्युपरत एटले ) विराम पामी छे, ने