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________________ ॥ संवरतत्त्वे यतिधर्मवर्णनम् ॥ (२४१) वानो स्वभाव ते क्षमा अर्थात् सहनशीलता कहेवाय. त्यां क्षमा ५ प्रकारनो छे ते आ प्रमाणे-कोइए आपणुं कांइ बगाडया छतां आ मारो उपकारी छे माटे एनापर क्रोध करवो युक्त नहिं एम विचारीने जे सहनशीलता धारणफरवी ते उपकारक्षमा, जो एनी साथे हुं क्रोध करीश तो ए मारुं कांइ बगाडशे एवा अभिप्रायथी अने पोतानामां सामे थवानी शक्ति नथी तेथी निवळताने अंगे सहनशीलता धारण करवी ते अपकारक्षमा, कर्मादिकला भयथी सहनशीलता राखे ते विपाकक्षमा, कोइना वचनथी दुभाय नहि, अने कोइने आकर वचन कहे नही ते वचनक्षमा, अने आत्मानो धर्मज क्षमा छे एम शिक्षा करवानी शक्ति छतां पण विचारी सहनशीलता राखे ते धर्मक्षमा एज सर्वथी श्रष्ट छे ने एवीज क्षपा राखवी जोइए. कदाच आ क्षमा न थावे तो पण पूर्वोक्त चार क्षमाओमांनी पण कोइएक क्षमा राखवीज जोइए. . २ अव-आर्जव एटले सरळता अर्थात् कपटरहितपणे ए पण संवरमार्ग छे. ज्यांसुधी मनुष्यना मनमां कोइपण बातनो दंभ-काट रहेल होय त्यांमुधी आत्ममार्ग शुद्ध थाय नहिं मारे दंभनो त्याग करो सरळता राखवी ते आजवधर्म कहेवाय. ३ मदव-मार्दव एटले अभिमाननो त्याग करवो. ज्यां सुधी अभिमान होय छे त्यां सुधी कषायनी प्रबळता रहे छे तेथी मोक्ष मार्ग साधी शकाय नहिं माटे मुमुक्षुए निरभिमानता राखवी. ___४ मुक्ति-मुक्ति एटले निर्लोभता अर्थात् कोइपण इष्ट पदार्थमां के विषयमां तृष्णा-आसक्ति न राखवी तेमुक्तिधर्म कहेवाय. ५ तव-तप एटले इच्छानिरोध करवो ते. आ धर्म निआरा तत्वमा आवे छे छतां संवरतश्चमां केम कहो ? तेनुं का. रण ए छे के सर्व क्रियाओमां एवो सप उत्तम छे के जेमाथीसंव
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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