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________________ (१८२) ॥ पुण्यतत्वभेदवर्णनम् ।। जाइओ-ए चार जातिओ रस-ने स्पर्श) कुखगइ-अशुभविहायोगति अपढम-हेला सिवायनां पांच उवधाय-उपघात नामकर्म | संघयण-संघयण (हाडना सांहुति-छे धान बंधारण.) पावस्स-पापतत्त्वना ( भेद) | संठाणा-संस्थान (लक्षणवालो अपसत्थं-अशुभ आकार) वन्नचउ-वर्णचतुष्क (वर्ण-गंध- | . गाथार्थ:-एकेन्द्रियजाति-द्वीन्द्रियजाति-त्रीन्द्रियजाति-अने चतुरिन्द्रियजाति ए चार जाति-अशुभविहायोगति--उपघातनामकर्म-अशुभवर्णादि चार-अने हेला सिवायनां पांच संघयण अने पांच संस्थान ए सर्व (पूर्वोक्त सहित ८२) भेद. पापतत्वना छे. विस्तरार्थः-पापतत्वना ८२ भेदमांथी ६२ भेद कहेवाया अने २० भेद वाकी रह्या छे ते आ प्रमाणे-- ६३ एकेन्द्रिय जाति--जे कर्मना उदयथी जीवने एकेन्द्रियपणुं प्राप्त थाय ते (अहिं एकेन्द्रियने मात्र स्पर्शेन्द्रियज प्राप्त थाय) ६४ द्वीन्द्रियजाति-जे कर्मना उदयथी जीवने बे इन्द्रियपणुं ( स्पर्श-ने रसना ) प्राप्त थाय ते. ६५ त्रीन्द्रियजाति-जे कर्मना उदयथी जीवने त्रीन्द्रिय पणुं ( स्पर्शन-रसनाने घ्राण ) प्राप्त थाय ते. ६६ चतुरिन्द्रिय जाति-जे कर्मना उदयथी जीवने चतुरिन्द्रिय पणु ( स्पर्शन-रसना-घ्राण-ने चक्षु ) प्राप्त थाय ते. ६७ अशुभविहायोगति-जे कर्मना उदयथी उंट अने गदभ सरखी अशुभ चाल प्राप्त थाय ते. ६८ उपघात-जे कर्मना उदयथी जीव पोताना रसोळी प
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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