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________________ ॥ पापतत्त्वम् ॥ अवतरण-हवे पापतत्त्वना ८२ भेद गणावतां प्रथम आ गा. थामा पापतत्वना ६२ भेद कहे छे. ॥ मूळ गाथा १८ मी. ॥ नाणंतरायदसगं, नव बीए नी असाय मिच्छत्तं । थावरदस निरयतिगं कसायपणवीत तिरियदुर्ग १०) ॥ संस्कृतानुवादः ॥ ज्ञानान्तरायदशकं, नव हितीये नीचरसातमिथ्यात्वम् । स्थावरदशकनिरयत्रिक, कषायपंचविंशतिः तिर्यगतिक॥१८॥ ॥ शब्दार्थः ।। नाण-ज्ञानावरण पांच .. मिच्छत्त-मिथ्यात्व अंतराय-अन्तराय पांच थावरदस-स्थावर वगैरे दशभेद दसंग-ए बे मलीने दश निरयतिग-नरकत्रिक ( नरक नव-नव (भेद ) संबन्धि ३ प्रकृति ) बीए-बीजा दर्शनावरणना कसाय-कषाय नीअ-नीचगोत्र पणवीस-पच्चीश असाय-आशातावेदनीय तिरियदर्ग-निर्यचनी चे प्रकृति गाथार्थः-५ ज्ञानावरण अने ५ अन्तराय ए बे मलीने १० भेद तथा बीजा दर्शनावरणीय कर्मना ९ भेद-नथा नीचगोत्रअशानावेदनीय-मिथ्यान्वमोहनीय-स्थावर वगेरै १० मंद-नरक
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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