SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 222
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ पुण्यतत्त्वभेदवर्णनम् ॥ (१७१) च-नली जसं-यश नामकर्म सुभगं-सौभाग्य नामकर्म | तसाइ-त्रस विगेरे मुस्सर-सुस्वर नामकर्म । दसगं-१० भेद आइज-आदेय नामकर्म इम-ए प्रमाणे होइ-2. गाथार्थः-त्रसनाम-बादरनाम०-पर्याप्तनाम०-प्रत्येकनाम-स्थिरनाम०-शुभनाम०-सौभाग्यनाम०-मुस्वरनामकर्म-आदेयनाम अने यशनाम-ए प्रमाणे त्रस वगेरे १० प्रकृतियो-भेद छ. विस्तरार्थ:-सदशक एटले त्रस नाम कर्म विगेरे १० प्रकृति ते त्रसदशक कहवाय. ते आ प्रमाणे १ स-जे कर्मना उदयथी जीवने सपणुं ( त्रास पामी एक स्थानथी बीजे स्थाने जवानी शक्ति ) प्राप्त थाय ते अहिं वायु अने अग्नि एबे स्थावर छतां पण गतिक्रियावाला छे परन्तु तेओनी गतिक्रिया त्रास-भय अने अनिष्टपणाना कारणथी नथी माटे वास्तविकरीते गतित्रस कहेवाग पण लब्धि (-नामकर्मना उदयथी ) त्रस नहिं . बादर-जे कर्मना उदयथी जीवने स्थूल शरीर (इन्द्रियगोपर यह शके तेवु शरीर ) प्राप्त थाय ते. अहिं एक पृथ्विकायादि जीवन शरीर इन्द्रियगोचर यतुं नथी तो पण अनेक पृथ्विकायजीवोना शरीर एकठां थये दृष्टिगोचर थाय ले माटे एक पृथ्विका याटिकनुं शरीर पण बादर कहेवाय. पर्याप्त-जे कर्मना उदयथी जीव स्वयोग्य पर्याप्तियों संपूर्ण करीने मरण पाम ने. ४ प्रत्येक-जे कर्मना उदयथी एकन जीव एक शरीरको पालिक होय ते (अथवा एक शरीर एकज जीवने प्राप्त थाय ते) '५ स्थिर-जे कर्मना उदयथी जीवने शरीरना दांत-हाडका वगैरे अवयवोने थिग्नानी प्राग्नि थाय ने-~
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy