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________________ ( १४२ ) || नवतश्व विस्तरार्थः ॥ " अथवा भूतकाळ, वर्तमानकाळ, अने भविष्यकाळ ए रीते ३ प्रकारनो काळ छे. त्यां भूतकाळ अने भविष्यकाळ अनंत समयात्मक, अने वर्त्तमानकाळ एक समयात्मक छे. भूतकाळ करतां भविष्यकाळ अनंत गुण छे अथवा जेटलो भूतकाळ व्यतीत थयो तेलो भविष्यकाळ छे एम वन्ने मान्यता भिन्न भिन्न महर्षिओनी छे. ने ते सापेक्षिक होवाथी अविरोधी छे. पुनः आ व्यावहारिक काळ पण अरूपी अने अढीद्वीपवर्ती छे, कारण के अढीद्वीप बाहेर सूर्य चंद्रनी गवि नथी माटे त्यां दिवस वर्ष मास इत्यादि व्यवहार नथी, ज्यां दिवस त्यां दिवसज छे, अने ज्यां रात्रि त्यां सदाकाळ रात्रिज छे, माटे अढी द्वीप बहार सर्व द्वीप समुद्रोमां, देवलोकमां, अने साते नरक पृथ्वीओमां जे १०००० वर्षनुं आयुष्य इत्यादि स र्व व्यवहार चाले छे ते अहीद्वीपमां चालता सूर्य चंद्रनो गतिने अनुसारे जाणवो. कां छे के - 29 "लोगाणुभागजणिअं, जोइसचक्कं भणंति अरिहंता । सव्वे कालविसेसा, जस्स गइविसेसनिफन्ना ॥ १ ॥ ( अर्थ - जेनी गति विशेषवडे सर्व काळभेदो उत्पन्न थयेला छेवा ज्योतिकने अरिहंत भगवंत लोकस्वभाव जनित ( लोकस्वभावे उत्पन्न थयेल गतिवाळु कहे छे. ) ॥ काळ द्रव्य संबन्धि संक्षिप्त कोष्टक || निर्विभाज्यकाळ प्रमाण समयनुं जब युक्त असंख्य समयनी २५६ आवलीनो १ समय १ जव० अन्तर्मुहूर्त १ आवली १ क्षुल्लकभव
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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