________________
पुस्तकना विषयमाटे संक्षेपमा आगळनी प्रस्तावनामां लखायेल होवाथी तथा स्वतंत्र विशाल विषयानुक्रमणिका राखेल होवाथी अहीं तेनी चर्चा करता नथी. जो के पुस्तकर्नु शुद्धिपत्रक दाखल कर्यु छे, तोपण दृष्टिदोष या अनुपयोगभावथी अशुध्ध रा होय तो ते वाचकवर्ग क्षन्तव्य गणी सुधारी वांचशे. अने अमोने सूचना करशे तो बीजी आवृत्तिमा सुधारवामां उपयोगी थशे,
आग्रन्थमां भारतमेदिनीमार्तण्ड स्वपरसमयपारावारपारीण न्यायालोक टीका ( तत्त्वप्रभा )-खंडनखाघटीका (न्यायप्रभा )-न्यायसिन्धु-अनेकान्ततत्त्वमीमांसा विगेरे न्यायग्रन्थो, वृहत्हेमप्रभा-लघुहेमप्रभा-परमलघुहेमप्रभा व्याकरणग्रन्थो, प्रतिमामातण्डादि औपदेशिकग्रन्थो विगेरेना निर्माता श्रीतीर्थरक्षणादिमाटे अखंड अमोघ परिश्रम करी श्रीसंघ उपर अनुपम अनुग्रह करनार शासनसम्राट् तपोगच्छाधिराज सकलमूरिसार्वभौम,भट्टारफ आचार्यमहाराजश्रीमानविजयनेमिसूरीश्वरजीना पट्टालंकार सिद्धान्तवाचस्पति-न्यायविशारद- आचार्य महाराजश्रीमान् विजयोदयसरीश्वरजीमहाराजे बहोळो सुधारो, बहोलो वधारो, टिप्पण, सूचना, परिशिष्ट विगेरे करी आपी अमारा उपर तेंमन वाचक वर्गउपर अगाध उपकार कर्यो छे, ! ॥
छेवटे आ नवतच विस्तरार्थ केटलो उपयोगी छ ?ते प्रश्ननो उत्तर वाचक वर्ग उपर राखी वाचकवर्गप्रत्ये सविनयनम्रपणे " आद्यन्त आ ग्रन्थने वांची यथार्थ तत्त्वज्ञान मेळवी सम्यक्त्वप्राप्ति-दृढता संपादनकरी सिद्धिपद मेळ्यो” तेवी प्रार्थना करुं छं सं० १९८०
श्री संघचरण सेवककार्तिक शुक्ल
। श्री जैन ग्रन्थप्रकाशक सभा. ' पूर्णिमा