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________________ ॥ जीवतत्त्वे आयुष्यप्राणवर्णनम् ॥ (९३) लकुल बंध करवाथी मरण थाय ते आनप्राण उपक्रम, ए ७ प्रकारनां उपक्रम लागवाथी आयुष्यपुद्गलो प्रतिसमय वधुने वधु प्रमाणमां क्षय थवाथी जीव अकाळे मरणपामे छ, उपक्रम लाग्या पहेलां भवोत्पत्तिना प्रथम समये विशेष बीजे समये हीन त्रीजे समये हीनतर एप्रमाणे प्रतिसमय हीन हीनतर आयुष्यपु लोनो क्षय चालु रहे छे, तेमां आ सातमांनु कोइ उपक्रम अल्पांशे लागे तो ते वखते हीन हीनतरनो अनुक्रम तुटीने विशेष विशेषतर नो अनुक्रम ( ते उपक्रमनी असर ज्यांसुधी रहे त्यांमधी) केटलीक वखते थइ जाय, अने ज्यारे प्रवल उपक्रम लागे त्यारे तो विशेष विशेषतर अथवा असंख्यगुण असंख्यगुणना अनुक्रमे सर्व पुद्गलो अन्तर्मुहूर्त्तमा ज क्षय पामो जाय छे. आ क्रम गुणणि जेवो समजवो. जीव पूर्वभवमांथी आटला श्वासोच्छवास पूर्ण करवा एवी संख्यानो निर्णय करी लावतो नथी, परन्तु आयुष्यनां पुद्गलो पूर्ण करवानो सो निर्णयज करी लाये छे. माटे ए प्रमाणे श्वासोच्छवास अने आयुष्यने कोइपण जातनो संबंध नथी. परन्तु एटलोज संबंध छे के ज्यां सुधी जीवे त्यां सुधी श्वासोच्छवास लेवा मृ. कवानो व्यापार करे, पण अमुक जीवने अमुक भवमां आटला श्वासोच्छवास लेवा ज जोइए एवो नियम नहि. पुनः जाणी जोइने अथवा तो दुःखथी के परिश्रमथी जो घणा श्वासोच्छवास चाले तो आयुष्यपुद्गलो घणा प्रमाणमां खपी जवाथी (अ. पवर्तनीय आयुष्यवाळा जीवनुं ) आयुष्य अल्प थाय. कारणके कर्मप्रकृति विगेरे ग्रथोमा अति दुःखोने श्वासोच्छवास घणा होय अने अति दुःखीने आयुष्कर्मनी निर्जरा पण वणी होय एवा संवंधने लइने पूर्वोक्त प्रसिद्धी थट्ट होय तो बनवा योग्य छे. पण वस्तु स्वरूप तेम जणातुं नथी. वळो लब्धिअपर्याप्ता जीवोना आयुष्यनो उच्छ्वास व्यापार सिवाय ज क्षय थतो होवाथी आयुष्यनी साथे उच्छ्वास व्यापारनी व्याप्ति नथी, मात्र उच्छ्वास व्यापार आयुष्यनी उदीरणामां हेतु संभवे छे.
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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